मंगलवार, 30 नवंबर 2010

मोबाइल फोन

बाबू जी, मेरा काम कब तक हो जाएगा? विवेक ने प्रकाश से पूछा। एक सप्ताह लग जाएगा। प्रकाश ने बताया और अन्य लोगों से बातें करने लगा। सब चले गये तब प्रकाश ने विवेक की ओर देखा, जाओ भाई, एक सप्ताह बाद आना। काफी दूर से आया हूं। एक बार आने-जाने में काफी समय लग जाता है। विवेक धीरे से बोला। तो मैं क्या करूं? प्रकाश ने झल्लाते हुए कहा।
कोई फोन नम्बर मिल जाता तो अच्छा रहता। मैं वहां से पूछ लेता और जब आप कहते तब यहां आ जाता। विवेक ने अपनी परेशानी बतायी।
मेरे पास कोई फोन नहीं है। प्रकाश ने कहा, तभी मोबाइल फोन की घंटी बजने लगी और वह जेब से फोन निकाल कर बातें करने लगा। बात खत्म होने पर उसने मोबाइल फोन को अपनी जेब में रख लिया। विवेक ने कहा, बाबू जी, इसी मोबाइल का नम्बर दे दीजिए।
इस पर प्रकाश ने बिगडते हुए विवेक से पूछा, यह मैंने अपने लिए लिया है या तुम लोगों के लिए? बाबू जी आप नाराज न होइये। परेशान हूं इसलिए नम्बर पूछ रहा हूं। अगर आप बता देंगे तो बडी कृपा होगी। विवेक बोला।
मेरे मोबाइल में पैसा नहीं है, इसलिए नंबर नहीं दे रहा हूं। अगर तुम्हें नम्बर चाहिए तो इसमें रीचार्ज-कूपन भरा दो, फिर जब मन हो तब मुझसे बात कर लेना, मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी। प्रकाश ने कहा।
यह सुनकर विवेक आश्चर्य से प्रकाश की ओर देखने लगा। फिर उसने कहा, बाबूजी, चलिए मैं रीचार्ज कूपन भरा दूं। प्रकाश विवेक के साथ बाहर की ओर चल दिया। [डॉ. विनय कुमार

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