शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

यहां मिला सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष


भारत के तीर्थों में एक महातीर्थ है जिसे हम गंगासागर के रूप में जानते हैं। गंगाजी इसी स्थान पर सागर में आकर मिली है। इसी स्थान पर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्राप्त हुआ था। यहां मकर संक्रान्ति पर बहुत बड़ा मेला लगता है जहां लाखों श्रद्धालु गंगा स्नान के लिए आते हैं।
इसलिए पूजा जाता है गंगासागर : कहते हैं यहां गंगा में डुबकी लगाने पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गायें दान करने के बराबर फल मिलता है। गंगासागर में कोई मंदिर नहीं है पहले यहां कपिल मुनि का मंदिर था परन्तु उसे समुद्र बहाकर ले गया। केवल कपिल मुनि की मूर्ति है जो वर्तमान में कलकत्ता में रखी गई है लेकिन मंदिर का कुछ भाग चार वर्षों में एक बार नजर जरूर आता है। शेष तीन वर्ष जल मग्न रहता है इसलिए कहते हैं सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार।
मेले से दो सप्ताह पहले एक अस्थाई मंदिर बनाया जाता है। जिसमें कपिल मुनि की मूर्ति रखी जाती है। मकर संक्रान्ति पर यहां पांच दिन के मेले का आयोजन किया जाता है संक्रान्ति के दिन समुद्र से प्रार्थना कर स्नान किया जाता है। दूसरे पहर में फिर से स्नान कर कपिल मुनि के दर्शन किए जाते हैं। यहां लोग श्राद्ध और पिण्डदान भी करते हैं।
कथा: एक बार कपिल मुनि ने श्राप देकर राजा सगर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। तब अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए राजा सगर के पड़पोते भागीरथ ने हिमालय पर जाकर कड़ी तपस्या की और गंगा को प्रथ्वी पर लाए। तब गंगा ने इसी स्थान पर सगर के साठ हजार पुत्रों को मोक्ष प्रदान किया। तभी से गंगा को भागीरथी कहा जाने लगा। इस जगह जहां मेला लगता है वहीं से गंगाजी समुद्र में मिलती हैं।
कैसे पहुंचें: गंगासागर को सागर द्वीप भी कहा जाता है। जो क लकत्ता से 135 किमी दूर दक्षिण में है। सागर द्वीप जाने के लिए कलकत्ता से पानी के जहाज जाते हैं। कलकत्ता से 57 किमी दक्षिण में डायमण्ड हारबर स्टेशन है वहां से नाव और पानी के जहाज दोनों ही गंगासागर जाते हैं।

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