गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

भागवत १३८: जब जामवंत ने हनुमान को उनकी शक्ति याद दिलाई

पिछले अंक में हमने पढ़ा कि रावण साधु का वेश धर कर माता सीता का हरण कर लेता है। राम काफी प्रयास करते हैं लेकिन फिर भी सीता का कोई पता नहीं चलता। सीता को ढूंढते हुए भगवान किष्किंधा आते हैं। यहां से किष्किंधा कांड प्रारंभ होता है। यहां रामकथा में पहली बार हनुमानजी का प्रवेश होता है। रामजी के जीवन में पहली बार हनुमानजी आए हैं। रामकथा में हनुमानजी का प्रवेश हुआ है। हनुमानजी का परिचय होता है और हनुमानजी श्रीराम से कहते हैं कि आईए-आईए आप सुग्रीव से मैत्री करिए। चलिए मेरे साथ। भगवान बोलते हैं-ठीक है।

हनुमान ने सुग्रीव से मैत्री करवाई। राम बाली का वध करते हैं और सुग्रीव को किष्किंधा का राजा बना देते हैं। राजकाज मिलने पर सुग्रीव भगवान का काम भूल जाता है। आदमी को राजकाज मिल जाए तो रामकाज पहली फुर्सत में भूल जाता है। सुग्रीव भी भूल गए, पर लक्ष्मण ने याद दिलाई। सुग्रीव ने वानरों से कहा कि सीताजी की सूचना लेकर आओ। वानर विचार कर रहे हैं कि कैसे समुद्र लांघा जाए? सबकी हिम्मत जवाब दे गई। तब जामवंत तथा वानरों ने हनुमानजी को उनकी शक्ति का स्मरण करवाया। शक्ति का स्मरण होते ही हनुमानजी लंका जाने हेतु तैयार होते हैं।
तब हनुमानजी चले हैं और फिर हनुमानजी को एक-एक करके सुरसा, सिंहिका, लंकिनी जो भी मिला सबको पराजित करते हुए विभीषण को प्रभु राम के पक्ष में आने का न्योता देते हैं। इसके बाद हनुमानजी अशोक वाटिका जाते हैं और माता सीता को प्रभु राम का संदेश सुनाते हैं । भूख लगने पर अशोक वाटिका के फल खाते हैं साथ ही वाटिका उजाड़ भी देते हैं। रावण का पुत्र अक्षयकुमार जब हनुमानजी को पकडऩे आता है तो वध कर देते हैं। इसके बाद मेघनाद आता है वह ब्रह्मास्त्र छोड़ता है। हनुमानजी ब्रह्माजी का मान रखने के लिए उस अस्त्र के बंधनों से बंध जाते हैं।

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