गुरुवार, 16 दिसंबर 2010

कामदेव के पांच बाणों का असर?

शास्त्रों में बताए मानव जीवन के चार पुरूषार्थो में से धर्म, अर्थ और मोक्ष के अलावा काम भी अहम मान गया है। काम का देवता कामदेव को बताया गया है। धार्मिक दृष्टि से कामदेव जगत के सृजन चक्र को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाते हैं। जिसके लिए माना जाता है कि वह प्रकृति और प्राणियों में भाव रूप में मौजूद रहते हैं।

पुराण कथा है कि देवताओं के कहने पर जगत कल्याण के लिए कामदेव ने भगवान शिव का तप भंग किया। इसी प्रसंग का वर्णन रामचरित मानस में गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भी किया गया। जिसमें कामदेव के स्वरूप और काम भाव से जगत को वशीभूत करने वाले पांच बाणों के बारे में लिखा गया है।
रामचरित मानस के बालकाण्ड में कामदेव के रूप का वर्णन करते हुए लिखा गया है कि कामदेव फूल का धनुष व पांच बाण रखने वाले और मछली के चिन्ह वाला ध्वजाधारी हैं। उनके काम भाव पैदा करने वाले पांच बाणों को बिषम या विषम कहा गया है। मानस की चौपाई में इन पांच बाणों से शिव पर छोड़ उनके तप भंग करने के बारे में कुछ इस तरह लिखा गया है -
छाड़े विषम बिसिख उर लागे। छूटि समाधि संभु तब जागे।
आगे की घटना में तप भंग होने के बाद क्रोधित शिव ने कामदेव को भस्म कर दिया। जिसके बाद कामदेव की पत्नी रति और देवताओं के निवेदन पर शिव ने ही शिव को बिना अंग भाव रूप में जगत में रहने का वरदान दिया। तब कामदेव अनंग कहलाए।
असल में कामदेव के काम रूपी पांच बाण और उसका असर प्रतीकात्मक है। जिसमें व्यावहारिक जीवन के लिए कुछ संदेश छुपे हैं। जिसका संबंध सीधे इंद्रिय संयम से है। जब पांच ज्ञानेन्द्रियां आंख, कान, त्वचा के साथ ही जीभ और नाक भी दृश्य, श्रवण, स्पर्श, स्वाद और सुंगध द्वारा वासना भरे भावों के बुरे प्रभाव में आती हैं तो उसका सीधा असर पांच कर्मेन्द्रियों पर होता है, जिनमें हाथ, पैर, मुंह, लिंग और गुदा शामिल होते हैं। ऐसे समय अगर शिव की भांति संयम न रख पाएं तो कामदेव के यह बाण सृजन की बजाय संहार का कारण बन सकते हैं।
संकेत है कि पांच बाण रूपी काम भाव वासनापूर्ति का नहीं बल्कि रचनात्मकता का विषय है। इसलिए व्यावहारिक जीवन में भी काम को भोग नहीं बल्कि योग बनाकर शिव की भांति काबू पाएं। धर्म दर्शन में भी यही बात इंद्रिय निग्रह या इंद्रिय संयम का मूल भाव है।

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