बुधवार, 15 दिसंबर 2010

तीन कहानियां

मृत्यु
रिटायर होने के बाद सुधीर बाबू ने निश्चय कर लिया कि अब बस पूर्णरूप से आराम करेंगे। चाहते तो एक-दो ट्यूशन घर पर ही पढा सकते थे, लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया।
दोनों लडके अच्छा कमा रहे हैं, वह भी कुछ करें, ऐसी विवशता भी नहीं है। सुधीर बाबू घर में पडे-पडे ऊब गए, घूमने निकले तो शहर से बाहर खेतों में पहुंच गए। एक खेत में बूढे को काम करके देख वह ठिठक गए।
बाबा, आपके लडके-बच्चे नहीं हैं क्या? सुधीर बाबू ने बूढे से पूछा। हैं क्यों नहीं, वह देखो बडा वाला खेत की गुडाई कर रहा है और उस खेत में छोटा वाला ट्रैक्टर से जुताई कर रहा है। दोनों बी.ए. कर चुके हैं और थोडा-बहुत पढा-लिखा मैं भी हूं, बूढा बोला।
इन्हें कोई नौकरी..। बाबू जी, मैं तो हमेशा उत्तम खेती मानता हूं इसलिए लडकों को भी जमीन से जोडे रहा। घर में फ्रिज, टीवी सब कुछ है और सब है मेहनत की कमाई का, बूढा उनकी बात काटते हुए बोला। अब इस उम्र में तो आराम करते, सुधीर बाबू बोले।
बाबूजी, समय से पहले मैं मरना नहीं चाहता। मृत्यु का मतलब शरीर का निष्क्रिय हो जाना ही तो है, मैं जीते जी निष्क्रिय कैसे हो जाऊं, बूढा बोला। सुधीर बाबू को लगा उनका ज्ञान अभी तक अधूरा ही था।

दो कुत्ते
वह भवन भव्य था। अंदर चारों ओर शीशे जडे हुए थे। न जाने कैसे एक कुत्ता अंदर पहुंच गया। शीशे में अपना चेहरा देखकर वह भडक गया। फिर उसने भौंकना शुरू कर दिया। शीशे में दिखायी देने वाले कुत्ते भी उसके साथ ही भौंकने लगे थे। इस प्रकार ढेर सारे कुत्तों को एक साथ भौंकता हुआ देखकर वह शीशे की ओर झपटा। शीशे वाले कुत्ते भी उसकी ओर झपटे। फिर क्या था, उसने तेजी से शीशे की ओर छलांग लगा दी। शीशे की खरोचों से वह बहुत बुरी तरह जख्मी हो गया था। वह काफी देर तक दर्द से कराहता रहा, तडफडाता रहा। अंतत:, मर गया। कुछ ही देर बाद उसी भवन में एक-दूसरा कुत्ता आ पहुंचा। उसको भी ढेर सारे कुत्ते दिखायी दिये। उसने एक क्षण उस मरे हुए कुत्ते की ओर देखा; सोचा फिर प्यार से दुम हिलाने लगा। सभी कुत्तों की दुमें हिलती हुई नजर आने लगीं। वह प्रसन्न हुआ और कुत्ते की ओर दुम हिलाते हुए पहुंच गया। वह खुशी से उछला। अपनी परछाई से खेला-कूदा फिर खुशी मन से दुम हिलाता हुआ बाहर निकल आया।

अ‌र्घ्य
शहर में दंगा उफान पर था। गश्ती पुलिस गाडियों के सायरन की आवाज गूंज रही थी। प्रेस फोटोग्राफर पंकज बनर्जी दंगा कवर करने निकले।
वे एक मकान के पास खडे ही हुए थे कि एक नारी-कंठ की मार्मिक चीख सुनाई पडी। बिना कुछ सोचे समझे वे ऊपर चढ गए। एक कमरे में एक युवती को तीन दरिंदे पकड-झपटकर उसके कपडे फाडने की कोशिश कर रहे थे और वह पूरी ताकत से फर्श की कालीन को मुट्ठी में पकड कर हाथ पैर पटक रही थी। शायद उसे धरती मां से रक्षा की आशा थी। बनर्जी उन तीनों से भिड गए और दो को तो काबू भी कर लिया मगर तीसरे ने मौका देखकर पीछे से राड मार दिया। वे गिर पडे और बेहोश हो गये। तभी फौजी बूटों की ऊपर चढती आवाज आने लगी।
लगभग एक हफ्ते बाद की बात है। बनर्जी अस्पताल के वार्ड में अपने बेड पर स्वास्थ्य लाभ कर रहे थे। कुछ देर पहले उनके अखबार के संपादक उनसे भेंट करके गए थे। बनर्जी अखबार पढ रहे थे। वार्ड में परफ्यूम की खुशबू फैल गई। एक युवती उनके बेड के पास आई, उनके पैरों पर फूल रखा। बनर्जी चोट के असर के कारण उस युवती को देर से पहचान पाए।
उस युवती ने कहा- सर, उस दिन आप न आते तो मेरा क्या..। इस दुनिया में द्रौपदियों की भरमार है तो कृष्णों की भी कमी नहीं है। बनर्जी ने अपने पैरों पर पानी की गर्म बूदें महसूस की। वह युवती उन्हें आंसुओं का अ‌र्घ्य अर्पित कर रही थी।

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