सोमवार, 20 दिसंबर 2010

भागवत-१४८: कंस ने क्यों वध नहीं किया देवकी का

जब लोगों को यह मालूम हुआ कि देवकी का सातवां गर्भ गिर गया तो उन्हें बड़ा दु:ख हुआ। देवकी और वसुदेव ने भी इसे भगवान की लीला ही समझी। और जब देवकी ने आठवां गर्भधारण किया तो कंस ने सेवकों को सावधान कर दिया कि मेरा काल आ रहा है इसलिए तुम सचेत रहना। भगवान के गर्भ में आते ही देवकी का शरीर तेजोमय हो गया। ऐसा लगने लगा मानों कई सूर्य देवकी के भीतर ही समा गए हों। इतना प्रकाश की कोई देवकी को देखने में भी समर्थ नहीं था।

जैसे पूर्व दिशा चन्द्रदेव को धारण करती है। वैसे ही शुद्ध सत्व से सम्पन्न देवकी ने विशुद्ध मन से सर्वात्मा एवं आत्म स्वरूप भगवान को धारण किया।भगवान सारे जगत में निवास रखते हैं। देवकी उनका ही निवास स्थान बन गई। देवकी के गर्भ में भगवान विराजमान हो गए थे। जब कंस ने देखा तब वह मन ही मन कहने लगा कि अब की बार मेरे प्राणों के दुश्मन विष्णु अवश्य ही देवकी के गर्भ में आ गया है। पहले उसने सोचा कि देवकी की हत्या कर दूं पर बाद में उसने विचार किया कि देवकी को मारना तो ठीक न होगा क्योंकि वीर पुरूष स्वार्थवश अपने पराक्रम को कलंकित नहीं करते।
एक तो यह स्त्री है, दूसरी बहन है और तीसरी गर्भवती है। इसको मारने से तो तत्काल ही मेरी कीर्ति, लक्ष्मी और आयु नष्ट हो जाएगी। यह सोचकर उसने देवकी को नहीं मारा।

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