सोमवार, 20 दिसंबर 2010

इसी जगह मिला ब्रह्मा के कटे सिर को मोक्ष


हिन्दु धर्म के प्रमुख वैष्णव तीर्थ और चार पावन धामों में एक बद्रीनाथ तीर्थ की यात्रा पर जहां कुदरत के तमाम खुशनुमा नजारों और पर्वत चोटियों की ऊंचाईयों को देखने का सुखद एहसास मिलता है, वहीं इस स्थान पर आने के बाद हर तीर्थयात्री स्वयं को धर्म और अध्यात्म की गहराइयों में उतरने से रोक नहीं सकता। क्योंकि इस तीर्थ और उसके आस-पास के सभी स्थान बहुत धार्मिक महत्व रखते हैं।
इन स्थानों में एक है बद्रीनाथ मंदिर के उत्तर दिशा में लगभग 100 मीटर दूरी पर स्थित है - ब्रह्मकपाल। ब्रह्मकपाल अलकनंदा नदी के किनारे स्थित है। वास्तव में यह एक विशाल शिलाखंड है और नदी का घाट है। ब्रह्मकपाल पौराणिक महत्व का स्थान होने के साथ ही धार्मिक कर्मकाण्ड के लिए प्रमुख तीर्थ है। ब्रह्म कपाल श्राद्ध कर्म के लिए सबसे पवित्र तीर्थ माना जाता है। यहां पर आकर तीर्थयात्री अपने पूर्वजों, मृत आत्माओं की आत्म शांति के लिए श्राद्ध पूजा और पिण्ड दान करते हैं।
हिन्दु धर्म में श्राद्ध कर्म के लिए अनेक पवित्र तीर्थ का महत्व है। किंतु धार्मिक मान्यता है कि ब्रह्मकपाल में श्राद्धकर्म करने के बाद पूर्वजों की आत्माएं तृप्त होती है और उनकों स्वर्गलोक की प्राप्ति होती है। इसके बाद कहीं भी पितृश्राद्ध और पिण्डदान करने की जरुरत नहीं होती। इस स्थान का पौराणिक महत्व बताया जाता है कि इस स्थान पर भगवान शिव भी ब्रह्म दोष से मुक्त हुए। इस कारण भी यह स्थान धार्मिक श्रद्धा का प्रमुख स्थान है।
कथा: एक बार भगवान शिव ने जगत के विषय पर ब्रह्मदेव से मतभेद होने पर क्रोधित होकर त्रिशूल से ब्रह्मदेव के पांच सिरों में से एक सिर काट दिया। किंतु सृष्टि रचियता ब्रह्मदेव का सिर कटते ही शिव के त्रिशूल से ही चिपक गया। भगवान शिव की अनेक कोशिशों के बाद भी वह सिर त्रिशूल से ही लगा रहा। इससे शिव ब्रह्म दोष से दु:खी होकर बद्री क्षेत्र में आए। यहां शिव ने बद्रीनारायण की आराधना की। जिससे जगत पालक विष्णु प्रसन्न हुए। उनकी कृपा से ब्रह्मदेव का कटा सिर त्रिशूल से निकलकर दूर जा गिरा। भगवान शिव भी ब्रह्मदोष से मुक्त हुए।वह सिर जहां गिरा, वह स्थान ही तीर्थ कहलाया। जो बद्रीनाथ धाम के समीप स्थित है। मान्यता है कि इससे ब्रह्मदेव के कटे सिर को भी मोक्ष प्राप्त हुआ। तब से ही यह क्षेत्र श्राद्ध कर्म और पितरों के मोक्ष तीर्थ के रुप में प्रसिद्ध है।

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