मंगलवार, 21 दिसंबर 2010

भागवत-१४९: जब कंस के कैदखाने में आए भगवान शंकर व ब्रह्मा

पिछले अंक में हमने पढ़ा कि देवकी के आठवें गर्भ में भगवान विष्णु आए इसका परिणाम यह हुआ कि कंस को उठते-बैठते, खाते-पीते, सोते-जागते और चलते-फिरते भगवान विष्णु का भय सताने लगा। उस पर मृत्यु का भय इतना हावी हो गया कि उसे चहुंओर भगवान विष्णु ही नजर आने लगा।

शुकदेवजी कहते हैं-हे परीक्षित। जब भगवान के अवतरण का समय आया तो भगवान शंकर और ब्रह्माजी कंस के कैदखाने में आए उनके साथ अपने अनुचरों समस्त देवता और नारदादि ऋषि भी पधार गए। ब्रह्मा, शंकर, नारद आदि सभी देवताओं ने भगवान श्रीहरि की स्तुति की। उस समय आकाश के सभी नक्षत्र, ग्रह और तारे शान्त सौम्य हो रहे थे। दिशाएं स्वच्छ प्रसन्न थीं, निर्मल आकाश में तारे जगमगा रहे थे।
ब्राह्मणों के अग्निहोत्र की कभी न बुझने वाली अग्नियां जो कंस के अत्याचार से बुझ गई थीं। वे इस समय अपने आप जल उठीं। पृथ्वी भी मंगलमय हो गई। भगवान का जन्म वर्णन-सन्त पुरूष पहले से ही चाहते थे कि असुरों की बढ़ती न होने पाए, अब उनका मन सहसा प्रसन्नता से भर गया। जिस समय भगवान के आविर्भाव का अवसर आया। स्वर्ग में देवताओं की डुगडुगियां अपने आप बज उठीं। किन्नर और गन्धर्व मधुर स्वर में गाने लगे तथा सिद्ध और चारण भगवान के मंगलमय गुणों की स्तुति करने लगे। बड़े-बड़े देवता और ऋषि-मुनि आनन्द से भरकर पुष्प की वर्षा करने लगे। जन्म और मृत्यु के चक्र से छुड़ाने वाले जनार्दन के अवतार का समय था।

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