बुधवार, 1 दिसंबर 2010

भोपाल गैस त्रासदी के 26 बरस!



यूनियन कार्बाइड कारखाने से 2 दिसंबर 1984 की रात जहरीली मिथाइल आइसोनेट गैस के रिसाव की दुर्घटना के बाद भोपाल की हवाएं जैसे थम-सी गईं, जीवन भी जैसे थम-सा गया और जिसने जीने के लिए सांस ली वह मौत के मुंह में समा गया। इस दुर्घटना में तत्काल 3,500 लोगों की मौत हुई थी। दुर्घटना के प्रभाव से हजारों लोग बीमार और विकलांग हुए। स्वयंसेवी संगठनों के अनुसार दुर्घटना के 72 घंटों के भीतर 10,000 लोगों की मौत हुई और अब तक 25,000 लोगों की मौत हो चुकी है। जो लोग जिंदा बचे उनके बच्चे शारीरिक और मानसिक रूप से विकलांग पैदा हुए।

एक जवानी, जो बूढ़ी हो गई!
यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड की स्थापना वर्ष 1969 में हुई थी। इसकी 50.9 प्रतिशत हिस्सेदारी यूनियन कार्बाइड के पास और 49.1 प्रतिशत हिस्सेदारी भारतीय निवेशकों के पास थी। इसमें सार्वजनिक क्षेत्र के वित्तीय संस्थान भी शामिल थे। जिस रात गैस रिसाव हुआ तबसे आज तक उसका मुख्य कार्यकारी अधिकारी अमेरिकी नागरिक वॉरेन एंडरसन को गिरफ्तार नहीं किया जा सका है। पीड़ितों को आज तक उचित न्याय नहीं मिला है। 25 बरस बीत गए, एक जवान पीढ़ी बूढ़ी हो गई, बूढ़ी पीढ़ी खत्म हो गई, लेकिन इंसाफ किसी को नहीं मिला!
01 2009

हमारा क्या कसूर था?

ये वे बच्चे हैं, जिनके मां-बाप आज से पच्चीस बरस पहले बच्चे हुआ करते थे। जहरीली गैस कुछ इस तरह से उनके खून में घुल गई कि न जाने कितनी पीढ़ियां इस तरह मानसिक और शारीरिक रूप से कमजोर पैदा होंगी? लेकिन जीवन मिला है तो उसका जतन तो करना ही होगा, कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं ऐसे बच्चों को फीजियोथेरैपी करवाती हैं, ताकि कुछ तो राहत मिले इस मुश्किल सफर में। अस्पतालों में 6000 हजार लोग प्रतिदिन पहुंचते हैं। मुआवजे के नाम पर कुछ ज्यादा नहीं मिला है। इतना ही नहीं गैस पीड़ित कई तरह की गंभीर बीमारियों से जूझ रहे हैं।

पथरा गई हैं आंखें, सुख के इंतजार में!
भोपाल गैस त्रासदी के 26 साल बाद भी यूनियन कार्बाइड संयंत्र परिसर में जमा रासायनिक पदार्थों ने भोपाल की जमीन और भू-जल को प्रदूषित कर रखा है। नई दिल्ली के अनुसंधान और आंदोलन संगठन एवं सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरमेंट की रिपोर्ट में खुलासा हुआ है कि संयंत्र से तीन किलोमीटर दूर तक के भू-जल में भारतीय मानक से 40 गुना अधिक तक कीटनाशक हैं। ये कीटनाशक लोगों के शरीर में धीमा जहर घोलने का काम कर रहे हैं। और लोग जोड़ों के दर्द, सांस लेने में परेशानी और अन्य समस्याओं से दो-चार हैं। पच्चीस बरस से इलाज का यह सिलसिला चल रहा है और राहत का कहीं नाम नहीं।

यह कैसा बचपन!

अपने बच्चों को स्वस्थ व खुश रखने के लिए माता-पिता क्या नहीं करते! लेकिन गैस त्रासदी ने सात साल के इस बच्चे के पैरों में खेलने की तो क्या चलने की शक्ति तक नहीं छोड़ी है। सरकार और यूनियन कार्बाइड के बीच हुए समझौते में पीड़ितों के लिए 47 करोड़ अमेरिकी डॉलर दिए गए। यह समझौता एक लाख पांच हजार पीड़ितों और मृतकों की संख्या तीन हजार मानकर किया गया था, जबकि हकीकत में पीड़ितों की संख्या पांच लाख 70 हजार और मृतकों की संख्या 25 हजार थी।
01 2009

रंगों में उतर आया है दर्द!

यूनियन कार्बाइड संयंत्र के बाहर म्युरल बनाकर अपने दर्द को बयान करती एक कलाकार। भोपाल गैस त्रासदी के 25 साल होने पर दिल्ली के जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) में तीन दिवसीय फिल्म महोत्सव का आयोजन किया गया। इस अवसर पर फोटो और कला प्रदर्शनियों के अलावा एक रैली का भी आयोजन किया गया। पीड़ितों की सहायता के लिए काम करनेवाले संगठनों ने लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार और राज्यसभा के सभापति हामिद अंसारी को इस आशय से संबंधित एक पत्र लिखा है कि दोनों सदनों में पीड़ितों को श्रद्धांजलि दी जाए।

हक की लड़ाई तो लड़नी ही होगी!
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यूनियन कार्बाइड संयंत्र के बाहर खड़ी महिलाएं गुहार कर रही हैं कि 25 बरस हो जाने के बावजूद सरकार ने उन्हें अब तक उचित मुआवजा नहीं दिया है। मुआवजा लेने के लिए और गुनाहगारों को सजा दिलवाने के लिए विभिन्न संगठन अपनी तरह से संघर्ष कर रहे हैं। भोपाल के शाहजहां पार्क में हर शनिवार को पीड़ित मिलते हैं और लड़ाई जारी रखने का संकल्प लेते हैं। ऐसे और भी कई आंदोलन लगातार चल रहे हैं, लेकिन सरकारों के कान पर जूं तक नहीं रेंगती।


अब तक कम नहीं हुए जख्म
विश्व की सबसे बड़ी औद्योगिक त्रासदी भोपाल गैसकांड को हुए 26 बरस हो गए हैं। आधी रात हुए इस हादसे में 15 हजार लोगों की मौत हो गई, जबकि 5 लाख से ज्यादा लोगों का जीवन दूभर कर दिया है। हालात यह हैं कि अब तक गैस के दुष्प्रभाव का सटीक आकलन तक नहीं किया जा सका है। 20 पीड़ित बस्तियाँ जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं और कई लोग इलाज के लिए भटक रहे हैं। 2 और 3 दिसम्बर 1984 की मध्य रात्रि में यूनियन कार्बाइड के टैंक नंबर 610 में से हुआ गैस का रिसाव आज भी भोपालियों को साल रहा है।
हर जख्म समय के साथ भर जाते है, लेकिन गैसकांड की हर बरसी पर भोपाल के जख्म ताजा हो जाते हैं। हजारों लोगों के लिए इलाज और राहत की उम्मीद एक साल पुरानी हो जाती है। आँकड़ों की मानें तो इस हादसे में कुल 5 लाख 74 हजार लोग घायल हुए। मुआवजे को आधार बनाए तो कुल 15 हजार 274 लोगों की जान गई, जबकि मृतकों का सरकारी आंकडा 3000 से अधिक है।
गैर सरकारी संगठनों के अनुसार गैस ने 30 हजार लोगों की जान ली है। मुआवजे के लिए कुल 10 लाख 29 हजार 515 प्रकरण मिले, जिनमें से 5 लाख 75 हजार लोगों को 1536 करोड़ का मुआवजा दिया गया।
25 साल बाद अब हालात यह हैं कि मामले के मुख्य आरोपी वारेन एंडरसन की गिरफ्तारी नहीं हो पाई है। दूसरी तरफ गैस पीड़ित नित नई बीमारियों के शिकार हो रहे है। गाँधी मेडिकल कॉलेज ने इंडियन काउंसिल फॉर मेडिकल रिसर्च को एक दर्जन से ज्यादा शोध प्रस्ताव भेजे हैं, लेकिन एक पर भी अनुमति नहीं मिली है।
अब तक तो गैस के स्वास्थ्य और पर्यावरण पर घातक असर का पूरा आकलन भी नहीं हो पाया है। सर्वोच्च न्यायालय के आदेश के बाद और तय समय सीमा पूरी हो जाने के 5 साल बाद भी गैस पीड़ित बस्तियों में शुद्ध पेयजल पाइप लाइन से नहीं पहुँचाया जा सका है।

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