शुक्रवार, 10 दिसंबर 2010

भागवत १३९: रावण का वधकर श्रीराम सीता के साथ अयोध्या आए

मेघनाद हनुमानजी को ब्रह्मास्त्र से बांधकर रावण के दरबार में लेकर आता है। रावण देखता है इस वानर की इतनी हिम्मत। मेरे पुत्र को मारा और अशोक वाटिका भी उजाड़ दी। इतना उपद्रव किया है इसने। रावण ने आज्ञा दे दी इसकी पूंछ जला दो। हनुमानजी की पूँछ तो नहीं जलती वे पूरी लंका में आग लगा देते हैं। लंका दहन करके लौटकर हनुमान सीताजी को प्रणाम करते हैं। सीताजी से चूड़ामणी लेकर रामजी के पास आते हैं। रामजी ने मुद्रिका दी थी। सीताजी ने चूड़ामणी दी। वापस लौटकर हनुमानजी भगवान को प्रणाम करते है तथा पूरी घटना का वर्णन सुनाते हैं।

हनुमानजी की बहुत प्रशंसा होती है। इधर रावण द्वारा भगाए जाने पर विभीषण श्रीराम की शरण में आ जाता है। पूरी बात जानकर भगवान लंका जाने के लिए कूच करते हैं। रास्ते में समुद्र आ जाता है। वानरों की सेना लेकर कैसे जाएं समुद्र पार। यह प्रश्न उठता है। यहां भगवान विभीषण से पूछ रहे हैं यह समुद्र कैसे लांघा जाए। जैसे ही भगवान श्रीराम ने विभीषण की सलाह पर समुद्र से निवेदन किया लक्ष्मणजी क्रोधित हो गए। लक्ष्मणजी ये सब काम पसंद ही नहीं करते, राम और निवेदन और वो भी समुद्र से। भगवान से लक्ष्मणजी कहते हैं हे प्रभु आप इस सागर को सुखा दीजिए। भगवान चुपचाप हैं। रामजी कहते हैं लक्ष्मण थोड़ा धैर्य रखो।
राम जानते थे कि मैं वरिष्ठ हूं। मुझे नेतृत्व देना है। तीन दिन बाद भगवान ने समुद्र को डांटा तो समुद्र ने रास्ता सुझाया। समुद्र पर बांध बनाकर भगवान सेना सहित लंका में पहुंच गए। अंगद को भेजा। अंगद ने संदेश दिया। युद्ध हुआ। रावण को भगवान मारते हैं, सीताजी को लेकर आते हैं। अवध प्रस्थान करते हैं। उत्तरकाण्ड के आरम्भ में हनुमानजी और भरत मिलते हैं। राम का राज्याभिषेक होता है। यहां आकर रामकथा समाप्त होती है। भागवत में संक्षेप में है।

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