रविवार, 19 दिसंबर 2010

भागवत १४७: इसलिए बलराम को संकर्षण भी कहते हैं

पिछले अंक में हमने पढ़ा कि देवकी के सातवें गर्भ में भगवान शेष आ गए। जब भगवान शेष के जन्म का समय आया तो उसके पहले ही भगवान के कहने पर योगमाया का आगमन हुआ। भगवान ने योगमाया को आदेश दिया कि देवी तुम ब्रज में जाओ। वहां नन्दबाबा के गोकुल में वसुदेव की पत्नी रोहिणी भी निवास करती हैं । इस समय मेरा वह अंश जिसे शेष कहते हैं देवकी के गर्भ में स्थित है उसे वहां से निकालकर तुम रोहिणी के गर्भ में रख दो। कल्याणी, अपने समस्त ज्ञान, बल आदि अंशों के साथ मैं देवकी का पुत्र बनूंगा और तुम नन्दबाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ से जन्म लेना।

तुम लोगों को मुंह मांगे वरदान देने में समर्थ हो। मनुष्य तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली जानकर धूप, दीप, नैवेद्य एवं अन्य प्रकार की सामग्रियों से तुम्हारी पूजा करेंगे। देवकी के गर्भ में से खीचें जाने के कारण शेषजी को लोग संसार में संकर्षण और बलभद्र भी कहेंगे।भगवान् ने जब इस प्रकार का आदेश दिया तो योगमाया ने कहा कि जो आज्ञा उनकी बात शिरोधार्य की। जैसा भगवान ने कहा उन्होंने वैसा ही किया।
योगमाया ने देवकी का गर्भ ले जाकर रोहिणी के उदर में रख दिया। समय आने पर भगवान शेष का जन्म हुआ। दाऊजी ने आंखें खोली ही नहीं, जब तक मेरा कन्हैया नहीं आएगा मैं आंखें नहीं खोलूंगा। यशोदा पूर्णमासी से बलरामजी की नजर उतारने की विनती करती हैं। पूर्णमासी कहती हैं कि यह तो किसी का ध्यान कर रहा है। इस बालक के कारण तेरे घर में बालकृष्ण पधारेंगे।

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