सोमवार, 10 जनवरी 2011

जब अर्जुन को ललकारा कर्ण ने


जब सभी राजकुमार अस्त्र विद्या में पारंगत हो गए तब द्रोणाचार्य ने राजकुमारों द्वारा सीखी गई अस्त्र विद्या के प्रदर्शन के लिए रंगमंडप बनवाया। उचित समय आने पर वहां सर्वप्रथम भीम व दुर्योधन के बीच कुश्ती का मुकाबला हुआ।उसके बाद द्रोणाचार्य ने अर्जुन को बुलाया।
अर्जुन ने विभिन्न तरह के बाणों का प्रदर्शन कर सबको आश्चर्यचकित कर दिया। सभी अर्जुन के पराक्रम को देखकर उसकी प्रशंसा करने लगे। उसी समय रंगमंडप में कर्ण ने प्रवेश किया और कहा कि उपस्थित सभी लोगों के सामने जो पराक्रम अर्जुन ने दिखाया है वह मैं भी दिखा सकता हूं। तब द्रोणाचार्य के कहने पर कर्ण ने भी अर्जुन के समान ही अस्त्रविद्या का प्रदर्शन किया। यह देखकर दुर्योधन बहुत प्रसन्न हुआ। तब कर्ण ने अर्जुन के साथ द्वन्द्वयुद्ध करने की इच्छा प्रकट की। तब द्रोणाचार्य ने इसके लिए हां कर दी।
तभी कृपाचार्य ने कर्ण से कहा कि अर्जुन चंद्रवंशी है तथा महाराज पाण्डु का पुत्र है इसलिए तुम भी अपने वंश का परिचय दो। इसके बाद ही द्वन्द्वयुद्ध करने का निर्णय होगा। यह सुनकर कर्ण चुप हो गया। तभी दुर्योधन ने बीच में आकर कहा कि यदि अर्जुन इसलिए कर्ण से युद्ध नहीं करना चाहता कि वह राजा नहीं है तो कर्ण को मैं इसी समय अंगदेश का राजा बनाता हूं। ऐसा कहकर दुर्योधन ने वहीं कर्ण का राज्याभिषेक कर दिया। तभी वहां कर्ण के पिता अधिरथ भी आ पहुंचे।
उन्होंने कर्ण को अपने सीने से लगाया और स्नेह किया। यह देखकर सभी लोग समझ गए कि कर्ण सूतपुत्र है। तब दुर्योधन कर्ण को अपने साथ रंगमंडप से बाहर ले गया।
sabhar-dainik bhaskar

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