रविवार, 9 जनवरी 2011

2011 की 11 राहें


डॉ. देवी शेट्टी चेयरमैन और संस्थापक, नारायण हृदयालय, बेंगलुरु
डॉ. देवी शेट्टी दुनियाभर के उन तमाम लोगों के लिए ‘दूसरा जीवन’ हैं, जो दिल के ऐसे ऑपरेशनों के लिए उनके पास पहुंचते हैं, जिसका ख़र्च उनकी पहुंच में हो। 55 वर्षीय डॉ. शेट्टी ने बुनियादी तौर पर अपने कार्यो का केंद्र हार्ट सर्जरी को रखा है।
इसके साथ ही वे 2002 से किसानों के लिए यशस्विनी सहकारी किसान स्वास्थ्य सुरक्षा स्कीम नामक एक माइक्रो-इंश्योरेंस प्रोग्राम भी चला रहे हैं। हॉस्पिटल की चैरिटी शाखा, नारायण हृदयालय फाउंडेशन फंड इकट्ठा करता है, ताकि ग़रीबों में भी सबसे ग़रीब लोगों को उच्च स्तर की सर्जिकल सुविधाएं दी जा सकें।
हर महीने, हॉस्पिटल डॉ. शेट्टी के मार्गदर्शन में 60 लोगों का नि:शुल्क ऑपरेशन करता है। 27 बरस के करियर में शेट्टी 20 हज़ार से अधिक ऑपरेशन कर चुके हैं।

सुनील मित्तल चेयरमैन व ग्रुप सीईओ, भारती इंप्रा.

टेलीकॉम टायकून सुनील मित्तल अपने कारोबार की समाजसेवी शाखा भारती फाउंडेशन को 100 करोड़ रुपए से ज्यादा का दान कर चुके हैं। इस फाउंडेशन का जोर शिक्षा पर है। इसकी प्रमुख कार्ययोजना है सत्य भारती स्कूल श्रंखला।

ये स्कूल पिछड़े इलाकों के साधनहीन बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा उपलब्ध कराते हैं। वे सरकारी स्कूलों के साथ भी सहभागिता बढ़ा रहे हैं, ताकि शिक्षा का स्तर उन्नत किया जा सके। मित्तल का मानना है कि समृद्धि के युग में देश के कापरेरेट जगत में परोपकार की प्रवृति तेज़ी से बढ़ेगी।

रति फ़ोर्ब्स
निदेशक, फ़ोर्ब्स मार्शल

फ़ोर्ब्समार्शल की डायरेटर और फ़ोर्ब्स फाउंडेशन के पीछे की संचालक शक्ति, रति फ़ोर्ब्स शिक्षा, स्वास्थ्य, माइक्रो-फाइनेंस तथा नज़रिए, व्यितत्व व चरित्र विकास के क्षेत्र में सक्रिय विभिन्न एनजीओ के साथ मिलकर काम करती रही हैं।

मूलत: फाउंडेशन अपनी जानकारियों के आधार को मज़बूत करना चाहता है, ताकि ‘सुपात्र’ लोगों के बारे में भरोसेमंद आंकड़े जुटाएं जा सकें। इससे ‘देना’ ज्यादा सार्थक होगा। फाउंडेशन लोगों की लत छुड़वाने के मामले में भी काफ़ी काम कर चुका है।

हेमेंद्र कोठारी
चेयरमैन, डीएसपी लैकरॉक

हेमेंद्र कोठारी मुंबई में रहने वाले जाने-माने स्टॉक ब्रोकर परिवार से आते हैं। उनके परिवार ने मुंबई के दादर में बाहर से आने वाले छात्रों के ठहरने व रुकने के एक संस्थान, एक लड़कियों का स्कूल, नासिक-देवलाली क्षेत्र में टीबी रोगियों के लिए सेनेटोरियम और डीएस कोठारी हॉस्पिटल स्थापित करने में मदद की है।

कोठारी ने शेरों और जंगलों के संरक्षण के लिए वन्यजीव संरक्षण ट्रस्ट भी स्थापित किया है। यह ट्रस्ट ताडोबा और कान्हा जैसे नेशनल पार्को में वन्य प्राधिकारियों और स्थानीय लोगों के साथ मिलकर काम करता है।

सुमन किलरेस्कर
चेयरपर्सन, किलरेस्कर समूह

किलरेस्कर इंडस्ट्रीज की प्रमुख सुमन किलरेस्कर बेसहारा महिलाओं और बच्चों के पुनर्वास में सक्रिय रूप से शामिल रही हैं और पुणो के एक मान्य गोद केंद्र को भी सहारा देती हैं। किलरेस्कर नियमित रूप से श्रीवत्स नामक चिल्ड्रन सेंटर की मदद में जुटी हैं,

जो छोड़ दिए गए बच्चों की देखभाल करता है। यहां हर बच्चे के लिए एक दीर्घकालीन पुनर्वास योजना को अमलीजामा पहनाया जाता है। ज्यादातर बच्चे भारतीय परिवारों द्वारा गोद लिए जाते हैं। इन कामों में वे सिर्फ़ आर्थिक सहायता ही नहीं देतीं, बल्कि समय भी देती हैं।

राजश्री बिरला
प्रमुख, आदित्य बिरला ग्राम्य विकास और सामुदायिक पहल केंद्र

राजश्री बिरला 3,700 गांवों में 70 लाख लोगों के साथ काम करती हैं और 45 हज़ार बच्चों के लिए 42 स्कूल चलाती हैं। उनका केंद्र साधनहीन समुदायों के लिए काम करता है, जिसका मुख्य जोर शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और परिवार कल्याण पर है।

वह जीवनयापन के प्रोजेट, बुनियादी ढांचा जमाने में सहयोग, समाज सुधार के लिए भी जुटा है। राजश्री अपने पुत्र कुमारमंगलम बिरला की इस बात पर यक़ीन करती हैं कि आने वाले समय में सरकारी और धार्मिक संस्थानों के बाद सबसे शितशाली सामाजिक इंस्टीट्यूशन कापरेरेट सेटर ही होगा।

लीला पूनावाला
संस्थापक, लीला पूनावाला फाउंडेशन

टेट्रा लेवल समूह की पूर्व सीएमडी लीला पूनावाला का फाउंडेशन 1994 में स्थापित हुआ था और तब से यह सैकड़ों लड़कियों की मदद कर चुका है, जो देश या विदेश में पोस्ट ग्रेजुएशन की राहें तलाश रही थीं।

यह फाउंडेशन पुणो शहर के साथ जिले के गांवों से भी पात्र लड़कियों का चयन करता है। इसमें एक क्लब भी है, जो लड़कियों को व्यक्तित्व विकास में मदद करता है। इस लिहाजा से फाउंडेशन ग्रामीण भारत को मुख्यधारा में लाने का कार्य सफलतापूर्वक कर रहा है।

हेम अग्रवाल, स्टॉक ब्रोकर, बीएसई

58 बरस के हेम अग्रवाल ने छह साल पहले एनजीओ के साथ जुड़कर काम करना शुरू किया था और उन्हें अफ़सोस है कि उन्होंने जीवन में समाजसेवा बहुत देर से शुरू की।

बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के स्टॉक ब्रोकर, अग्रवाल मुंबई की एक चाल में पले-बढ़े हैं। वे कहते हैं कि उनके पिता ने बच्चों की अच्छी शिक्षा सुनिश्चित की और यही कारण है कि वे चाल से निकल सके। अग्रवाल फिलहाल आकांक्षा जैसे एनजीओ को दान देते हैं और मिलकर काम करते हैं, जो अभावग्रस्त बच्चों को बेहतर शिक्षा हासिल करने में मदद करता है।

अग्रवाल महसूस करते हैं कि उन्होंने जितना दिया है, उतना ही ज्यादा पाया भी है। ‘मैंने ज्यादा धीरज रखना सीखा है..अब मैं शुरुआत की तुलना में स्टॉक मार्केट में ज्यादा पैसा बना रहा हूं। इसने मेरे हर दिन के जीवन में मदद की है। लेकिन आपको देने के बारे में गंभीर होना होगा।’

टीवी मोहनदास पई, मानव संसाधन प्रमुख, इन्फोसिस

टीवी मोहनदास पई ने ज़रूरतमंद छात्रों के लिए बहुत काम किया है। उनके ‘अक्षय-पत्र’ फाउंडेशन की नींव सन् 2000 में रखी गई, उस समय यह रोज़ाना डेढ़ हज़ार छात्रों का भोजन ख़र्च उठाता था।

अब यह सात राज्यों में 6,800 स्कूलों के 12 लाख विद्यार्थियों का पेट भर रहा है। पई अनेक सरकारी स्कूलों के साथ मिलकर शिक्षकों के लिए अल्पकालिक कोर्स चलाते रहे हैं। वे कहते हैं, ‘शासन-प्रणाली में सुधार कर निचले तबक़े के ज्यादा-से-ज्यादा लोगों तक पहुंचने की ज़रूरत है। हम अपने स्तर पर जो कुछ बेहतर कर सकते हैं, उसके लिए कोशिश कर रहे हैं।’

ओआर पटेल, संस्थापक, अजंता व ऑरपेट समूह

85 साल के ओआर पटेल दीवार-घड़ी व अन्य घरेलू उपयोग की चीज़ें बनाने वाली कंपनी अजंता और ऑरपेट ग्रुप के संस्थापक हैं और वे जिस भी ऊंचाई तक हैं, यह उनकी मेहनत का ही नतीजा है। वे गुजरात से हैं और शून्य से शुरू कर शिखर तक पहुंचे हैं।

58 साल की उम्र में हाईस्कूल पीटी टीचर के पद से रिटायर होने के बाद उन्होंने अजंता ग्रुप शुरू किया। अब वे बिजनेस से भी रिटायरमेंट ले चुके हैं और अपना पूरा समय परोपकार में दे रहे हैं। उन्होंने पूरे गुजरात में स्कूली छात्रों के हॉस्टल निर्माण के लिए दान दिए हैं। इन हॉस्टलों में 20 हजार से ज्यादा छात्र रह रहे हैं।

नितिन देशमुख
प्रमुख, प्राइवेट इक्वालिटी, कोटक ग्रुप

कोटक ग्रुप में निजी इिवटी के हेड नितिन देशमुख समय की नब्ज़ को थामे हुए हैं। वे लाइफ साइंस और हेल्थ केयर इंडस्ट्री में मौजूदा डेवलपमेंट के साथ पूरी तरह अप-टू-डेट हैं।

अपने इसी ज्ञान की बदौलत वे बहुत कुछ अलग करते रहते हैं। उन्होंने पार्किसंस रोग और कैंसर पर रिसर्च के लिए मोटी रकम दान की थी। इसके अलावा सप्ताहांत में वे सपोर्ट ग्रुप (विभिन्न रोगों के पीड़ितों और उनके परिजनों की हर तरह से मदद करने वाले समूह) के साथ मिलकर पार्किसंस रोगियों के परिवारों के लिए काम करते हैं।
Source: bhaskar

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