सबसे बड़ा फल मिलता है गंगासागर में
भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रृद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए वहां मकर-संक्रांति पर्व के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है।
लेकिन भारत में मकर संक्रांति के पर्व पर सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में गंगासागर में लगता है। कथा है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी स्वर्ग के उतरकर भगीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई।
इसलिए पूजा जाता है गंगासागर : कहते हैं यहां गंगा में डुबकी लगाने पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गायें दान करने के बराबर फल मिलता है। गंगासागर में कोई मंदिर नहीं है पहले यहां कपिल मुनि का मंदिर था परन्तु उसे समुद्र बहाकर ले गया। केवल कपिल मुनि की मूर्ति है जो वर्तमान में कलकत्ता में रखी गई है लेकिन मंदिर का कुछ भाग चार वर्षों में एक बार नजर जरूर आता है। शेष तीन वर्ष जल मग्न रहता है इसलिए कहते हैं सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार।
मेले से दो सप्ताह पहले एक अस्थाई मंदिर बनाया जाता है। जिसमें कपिल मुनि की मूर्ति रखी जाती है। मकर संक्रान्ति पर यहां पांच दिन के मेले का आयोजन किया जाता है संक्रान्ति के दिन समुद्र से प्रार्थना कर स्नान किया जाता है। दूसरे पहर में फिर से स्नान कर कपिल मुनि के दर्शन किए जाते हैं। यहां लोग श्राद्ध और पिण्डदान भी करते हैं।
कैसे पहुंचें: गंगासागर को सागर द्वीप भी कहा जाता है। जो क लकत्ता से 135 किमी दूर दक्षिण में है। सागर द्वीप जाने के लिए कलकत्ता से पानी के जहाज जाते हैं। कलकत्ता से 57 किमी दक्षिण में डायमण्ड हारबर स्टेशन है वहां से नाव और पानी के जहाज दोनों ही गंगासागर जाते हैं।
भारत में समय-समय पर हर पर्व को श्रृद्धा व आस्था के साथ मनाया जाता है। मकर संक्रांति पर्व का हमारे देश में विशेष महत्व है। ऐसा कहा जाता है कि गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर प्रयाग में मकर संक्रांति पर्व के दिन सभी देवी-देवता अपना स्वरूप बदलकर स्नान के लिए आते हैं। इसलिए वहां मकर-संक्रांति पर्व के दिन स्नान करना बहुत पुण्यदायी माना जाता है।
लेकिन भारत में मकर संक्रांति के पर्व पर सबसे प्रसिद्ध मेला बंगाल में गंगासागर में लगता है। कथा है कि मकर संक्रांति के दिन गंगाजी स्वर्ग के उतरकर भगीरथ के पीछे -पीछे चलकर कपिलमुनि के आश्रम में जाकर सागर में मिल गई।
इसलिए पूजा जाता है गंगासागर : कहते हैं यहां गंगा में डुबकी लगाने पर दस हजार अश्वमेघ यज्ञ और एक हजार गायें दान करने के बराबर फल मिलता है। गंगासागर में कोई मंदिर नहीं है पहले यहां कपिल मुनि का मंदिर था परन्तु उसे समुद्र बहाकर ले गया। केवल कपिल मुनि की मूर्ति है जो वर्तमान में कलकत्ता में रखी गई है लेकिन मंदिर का कुछ भाग चार वर्षों में एक बार नजर जरूर आता है। शेष तीन वर्ष जल मग्न रहता है इसलिए कहते हैं सारे तीरथ बार-बार गंगासागर एक बार।
मेले से दो सप्ताह पहले एक अस्थाई मंदिर बनाया जाता है। जिसमें कपिल मुनि की मूर्ति रखी जाती है। मकर संक्रान्ति पर यहां पांच दिन के मेले का आयोजन किया जाता है संक्रान्ति के दिन समुद्र से प्रार्थना कर स्नान किया जाता है। दूसरे पहर में फिर से स्नान कर कपिल मुनि के दर्शन किए जाते हैं। यहां लोग श्राद्ध और पिण्डदान भी करते हैं।
कैसे पहुंचें: गंगासागर को सागर द्वीप भी कहा जाता है। जो क लकत्ता से 135 किमी दूर दक्षिण में है। सागर द्वीप जाने के लिए कलकत्ता से पानी के जहाज जाते हैं। कलकत्ता से 57 किमी दक्षिण में डायमण्ड हारबर स्टेशन है वहां से नाव और पानी के जहाज दोनों ही गंगासागर जाते हैं।
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