बुधवार, 19 जनवरी 2011

दो कहानियां

परोपकार की सीख
अरब के एक खलीफा बेहद ईमानदार और न्यायप्रिय थे। एक बार वह बीमार हो गए। उनका काफी इलाज कराया गया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। अपना अंत समय जान खलीफा ने खजांची को बुलाया और उससे पूछा, 'बताओ, खलीफा बनने के बाद मेरी निजी संपत्ति कितनी बढ़ी है?' खजांची ने हिसाब लगाया और बोला, 'हुजूर, आपकी निजी संपत्ति में एक ऊंट, एक दुशाला और एक बकरी का इजाफा हुआ है।' खलीफा ने उन्हें गरीबों में बांट देने का हुक्म दिया। इसके बाद उन्हें यह भी पता चला कि उन्होंने राजकोष से पांच हजार दिरहम लिए थे।
इस पर वह बोले, 'मेरा घर बेचकर पांच हजार दिरहम खजाने में जमा कर दिए जाएं और जो बचें उन्हें गरीब लोगों व अनाथ बच्चों में बांट दिया जाए।' इसके बाद वह अपने आसपास खड़े सभी लोगों से बोले, 'मेरी आखिरी यात्रा में सिर्फ तीन कपड़े मेरे जिस्म पर हों, जिनमें से दो तो इस वक्त मेरे शरीर पर हैं ही। तीसरा कपड़ा खरीद कर मुझ पर डाल दिया जाए।' यह सुनकर उनके कुछ मित्र बोले, 'हम तीनों नए कपड़े खरीद ही सकते हैं और फिर अंतिम यात्रा में तो नए कपड़े लिए जाने चाहिए, भला पुरानों से काम क्यों चलाया जाए?' उन मित्रों की बात सुनकर खलीफा बोले, 'अरे भाई, क्या तुम इतना भी नहीं जानते कि धरती पर नए कपड़ों की जरूरत मुर्दों के बजाय जिंदा लोगों को ज्यादा है। आप लोग कृपया जिंदा लोगों को ही नए कपड़े देने का प्रयास करें।' यह सुनकर सभी लोग खलीफा के प्रति श्रद्धा से भर उठे।

मां और शिक्षक
एक गरीब मां चाहती थी कि उसका बेटा पियानो सीख कर एक बड़ा कलाकार बने। वह उसे हर रोज संगीत शिक्षक के पास ले जाती, किंतु बच्चा चाह कर भी सीख नहीं पाता। सिखाने वाले शिक्षक काफी प्रसिद्ध थे। वे भी बच्चे को सिखाने की कोशिश करते, पर कई बार झल्ला कर मना कर देते। फिर भी मां हर रोज उसेले कर आती और पूरे क्लास के दौरान बाहर बैठी रहती। एक दिन मास्टर ने कहा कि आपका बेटा नहीं सीख सकता, इसे ले जाओ। यह तो मेरी भी बदनामी करा देगा कि किसने सिखाया है, जो इतना बेसुरा बजाता है। वह लड़का मां के साथ वापस चला गया और फिर दोबारा क्लास के लिए नहीं आया। कुछ समय बाद स्कूल के वार्षिक उत्सव का आयोजन हुआ, जिसमें पुराने छात्र भी आमंत्रित किए गए।
समारोह में वह बालक भी आया। उसने मैले- कुचले कपड़े पहन रखे थे। टीचर ने उसे देखा, तो उन्हें दया आ गई। उन्होंने कहा कि आज तुम्हें भी बजाने का मौका दूंगा, लेकिन जरा बाद में। वह लड़का पीछे जाकर बैठ गया। काफी बच्चे आए और उन्होंने बहुत अच्छा बजाया। आखिर में इसकी बारी आई। लेकिन उसने इतना अच्छा पियानो बजाया कि सभी मंत्रमुग्ध हो गए। टीचर ने जा कर उसे गले लगा लिया। फिर पूछा, इतना अच्छा कैसे सीखा, तुम तो बिल्कुल नहीं बजा पाते थे। लड़के ने बताया, मेरी मां चाहती थी कि मैं अच्छा पियानो बजाना सीखूं, किंतु उन्हें कैंसर था। इसकी वजह से वह सुन नहीं सकती थीं। अब वह सुन सकती है। मैंने उसी को सुनाने के लिए बजाया था। संगीत शिक्षक श्रोताओं की ओर देखने लगा, क्या वो आई हैं? कहां बैठी हैं?
बच्चे ने धीरे से कहा, वे जिंदगी की इस लड़ाई में आज हार गईं। लेकिन स्वर्ग से शायद वे मेरा पियानो सुन सकें। सुन कर सबकी आंखें भींग गईं। और टीचर ने उस बच्चे से माफी मांगी। सच्चा शिक्षक वह नहीं, मां थी जिसके पास इतना धैर्य था।

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