सोमवार, 17 जनवरी 2011

प्रार्थना के बीच में

एक सेठ एक साधु से मिलने आया। साधु को प्रणाम करके उसने कहा, 'बाबा, मैं प्रार्थना करना चाहता हूं, लेकिन तमाम कोशिशों के बावजूद नहीं कर पाता। जब भी मैं ध्यान लगाने की कोशिश करता हूं तभी मेरे आगे दुनियावी चीजें आ खड़ी होती हैं। धन कमाने और पारिवारिक तनाव के बारे में सोचने लग जाता हूं। आप ही बताइए मुझे प्रार्थना में मन लगाने के लिए क्या करना चाहिए?' यह सुनकर साधु महाराज सेठ को एक ऐसे कमरे में ले गए जिसकी खिड़कियों में शीशे लगे हुए थे। साधु ने सेठ को कांच के पार बाहर का नजारा दिखाया। शीशों से पेड़, उस पर चहकते पक्षी व दूसरी कई चीजें नजर आ रही थीं। यह देखकर सेठ प्रसन्न हो गया। उसके बाद साधु उसे एक दूसरे कमरे में लेकर गए। वहां कमरों की खिड़कियों पर चांदी की चमकीली परत लगी हुई थी। साधु बोले, 'सेठ जी, जरा देखो तो इस चांदी की चमकीली परत के पार आप क्या देख पाते हैं?'
सेठ चांदी की चमकीली परत के पास गया तो उसे अपने चेहरे के सिवाय और कुछ नहीं दिखा। बाहर के मनोरम दृश्य उस परत में खो गए थे। यह देखकर सेठ बोला, 'बाबा, यहां तो बाहर की दुनिया ही गायब है। चांदी की चमकीली परत में तो मुझे सिवाय अपने चेहरे के कुछ भी दिखाई नहीं पड़ता जबकि कांच में से मुझे बाहर के मनोरम दृश्य दिखाई पड़ रहे थे।' सेठ की बात सुनकर साधु बोले, 'बिल्कुल सही कहा तुमने। इसी तरह तुम भी प्रार्थना करते समय अपने ऊपर चांदी की परत चढ़ाए रखते हो इसलिए उसमें तुम्हें अपनी शक्ल और अहं के अलावा कुछ और नजर नहीं आता। यदि तुम स्वयं को कांच की तरह पारदर्शी और स्वच्छ बनाओगे तो तुम्हारा प्रार्थना में ध्यान सहज ही लग जाएगा।' सेठ को अपनी गलती का अहसास हो गया और उसने उसी क्षण निश्चय किया कि अब वह बेमतलब की चीजों को प्रार्थना के बीच में नहीं आने देगा।

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