मंगलवार, 11 जनवरी 2011

पिशाच योनि से कैसे मुक्त हुआ बिन्दुग?


जब चंचुला शिवलोक में सुखपूर्वक रहने लगी तो एक दिन उसे अपने पति बिन्दुग की बहुत याद आई। चंचुला माता पार्वती के पास गई और बिन्दुग के बारे में पूछा। माता पार्वती ने बताया कि तुम्हारा पति बिन्दुग बहुत समय तक नरक में रहा और यातनाएं भोगी। वर्तमान में वह विंध्यांचल पर्वत पर पिशाच योनि में रह रहा है। यह सुनकर चंचुला को बहुत कष्ट हुआ। तब उसने माता पार्वती से उसके उद्धार का उपाय पूछा। माता ने कहा कि यदि वह शिव महापुराण का श्रवण करे तो पिशाच योनि से मुक्त हो सकता है।
चंचुला ने माता पार्वती से कहा कि कोई ऐसा उपाय कीजिए जिससे कि मेरे पति विंध्यांचल पर्वत पर रहते हुए ही शिव महापुराण सुन सकें। तब माता पार्वती ने भगवान शिव की कीर्ति का गान करने वाले गंर्धवराज तुम्बुरु को बुलाया और कहा कि तुम विंध्यांचल पर्वत पर जाकर शिव महापुराण कथा का वाचन करो जिससे वहां रहने वाले पिशाच को मुक्ति मिल सके। तुम्बुरु ने माता पार्वती की आज्ञानुसार वैसा ही किया। तुम्बुरु ने उस पिशाच को पाशों से बांधकर आसन पर बैठाया और हाथ में वीणा लेकर भगवान शंकर की कथा का वाचन किया।
कथा के समाप्त होते ही उस पिशाच ने अपने पैशाचिक शरीर को त्याग दिया और उसका रूप दिव्य हो गया। इस प्रकार बिन्दुग दिव्य शरीर पाकर अपनी पत्नी चंचुला के साथ भगवान शिव व माता पार्वती आराधना करने लगा।इस प्रकार बिन्दुग व चंचुला सुखपूर्वक भगवान शिव के धाम में रहने लगे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें