शनिवार, 8 जनवरी 2011

मकर संक्रांति के दिन ही धरती पर आई थी गंगा


हमारे देश में अनेक तीर्थ हैं लेकिन गंगासागर का महत्व उन सभी में सर्वाधिक माना गया है। इसलिए यह कहा जाता है कि सारे तीरथ बार-बार, गंगासागर एक बार। गंगासागर से जुड़ी एक पौराणिक कथा भी है जो इस प्रकार है-
भगवान श्रीराम के पूर्वज सूर्यवंशी राजा सगर की दो पत्नियां थीं केशिनी और सुमति। केशिनी का एक ही पुत्र था जिसका नाम असमंजस था, जबकि सुमति के साठ हजार पुत्र थे। असमंजस बहुत ही दुष्ट था। उसको देखकर सगर के अन्य पुत्र भी दुराचारी हो गए। इधर असमंजस के यहां अंशुमान नाम का धर्मात्मा पुत्र हुआ वह अपने दादा राजा सगर की सेवा करने लगा। एक बार सगर ने अश्वमेध यज्ञ किया। तब इंद्र ने उस यज्ञ के घोड़े को चुराकर पाताल में कपिलमुनि के आश्रम में छुपा दिया।
जब अश्व नहीं मिला तो सगर के पुत्रों ने पृथ्वी को खोदना प्रारंभ किया। तब पाताल में उन्हें कपिलमुनि के आश्रम में यज्ञ का घोड़ा दिखाई दिया। यह देखकर सगर के सभी पुत्रों ने समाधि में लीन कपिल मुनि को भला-बुरा कहा। सगर पुत्रों की बात सुनकर जैसे ही कपिल मुनि ने आंखें खोली सभी सगर पुत्र वहीं भस्म हो गए। इसके बाद सगर ने अपने पौत्र अंशुमन को घोड़े की खोज में भेजा। अंशुमन भी कपिल मुनि के आश्रम तक गए और वहां उन्होंने अपने पितरों की भस्म तथा यज्ञ का घोड़ा देखा।
तब अंशुमन ने कपिलमुनि की स्तुति की। प्रसन्न होकर कपिलमुनि ने अंशुमन को वह घोड़ा दिया और यह भी बताया कि गंगाजल से ही तुम्हारे पितरों का उद्धार संभव है। अंशुमन के बाद उनके पुत्र दिलीप और दिलीप के पुत्र भगीरथ हुए। सभी ने अपने पितरों की शांति के लिए घोर तपस्या की। तब भगीरथ की तपस्या से प्रसन्न होकर देवी गंगा ने पृथ्वी पर आना स्वीकार किया। गंगा का वेग धारण करने के लिए भगीरथ ने भगवान शंकर से निवेदन किया। इस प्रकार गंगा सागर पर पहुंचकर गंगाजी ने सगर के सभी पुत्रों का उद्धार कर दिया।
उस दिन मकर संक्रांति थी। इसलिए यह मान्यता है कि मकर संक्रांति पर्व पर गंगासागर में स्नान करने से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिल जाती है।

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