सोमवार, 10 जनवरी 2011

भागवत-१६३

जब मुनि गर्गाचार्य ने किया यशोदानंदन का नामकरण
पं. विजयशंकर मेहता
पिछले अंक में हमने पढ़ा यादवों के कुलगुरु श्रीगर्गाचार्य गोकुल में आए। नंदबाबा ने उनसे बालकों के नामकरण की इच्छा प्रकट की। तब यह बात तय हुई कि नामकरण बिना किसी उत्सव से चुपचाप किया जाएगा। नंदबाबा ने हां कह दिया।सबसे पहले गर्गाचार्यजी ने देवी रोहिणी के पुत्र का नामकरण किया और नंदबाबा से कहा- यह रोहिणी का पुत्र है इसलिए इसका नाम होगा रौहिणेय। यह अपने सगे-सम्बन्धी और मित्रों को अपने गुणों से अत्यन्त आनन्दित करेगा। इसलिए इसका नाम होगा राम। इसके बल की कोई सीमा नहीं है, अत: इसका एक नाम बलराम भी है। संकर्षण के माध्यम से यह देवकी के गर्भ से रोहिणी के गर्भ में आया है इसलिए इसका एक नाम संकर्षण भी होगा।

इसके बाद गर्गाचार्यजी ने यशोदानंदन का नामकरण किया-नंदलाल को देखते ही गर्गाचार्यजी का चेहरा खुशी से खिल उठा। उन्होंने कहा- यशोदा यह जो सांवले रंग का तुम्हारा पुत्र है। यह प्रत्येक युग में शरीर ग्रहण करता है। पिछले युगों में इसने क्रमश: श्वेत, रक्त और पीत-ये तीन रंग स्वीकार किए थे। अब की यह कृष्णवर्ण हुआ है। इसलिए इसका नाम कृष्ण होगा। नन्दजी! यह तुम्हारा पुत्र पहले कभी वसुदेवजी के घर भी पैदा हुआ था इसलिए इस रहस्य को जानने वाले लोग इसे वसुदेव भी कहेंगे।
तुम्हारे पुत्र के और भी बहुत से नाम हैं तथा रूप भी अनेक हैं। इसके जितने गुण हैं और जितने कर्म, उन सबके अनुसार अलग-अलग नाम पड़ जाते हैं। मैं तो उन नामों को जानता हूं, परन्तु संसार के साधारण लोग नहीं जानते। यह अपनी लीलाओं से सबको आनंदित करेगा और दुष्टों का सर्वनाश करेगा

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