सोमवार, 10 जनवरी 2011

जीवन का रहस्य

राजा सुषेण के मन में कुछ प्रश्न थे, जिनके उत्तर की तलाश में वह एक महात्मा के पास पहुंचे। महात्मा ने कहा, 'अभी मेरे पास समय नहीं है। मुझे अपनी वाटिका बनानी है।' राजा भी उनकी मदद करने में जुट गए। इतने में एक घायल आदमी भागता-भागता आया और गिरकर बेहोश हो गया। महात्मा जी ने उसके घाव पर औषधि लगाई। राजा भी उसकी सेवा में लग गए। जब वह आदमी होश में आया तो राजा को देखकर चौंक उठा। वह राजा से क्षमा मांगने लगा।
जब राजा ने इसका कारण पूछा तो उसने बताया कि वह राजा को मारने के इरादे से निकला था, लेकिन सैनिकों ने उसके मंसूबों को भांप लिया और उस पर हमला कर दिया। वह किसी तरह जान बचाकर भागता हुआ इधर पहुंचा है। महात्मा जी के कहने पर राजा ने उसे क्षमा कर दिया। लेकिन तब राजा ने महात्मा से प्रश्न किया, 'मेरे तीन प्रश्न हैं। सबसे उत्तम समय कौन-सा है, सबसे बढि़या काम कौन सा है और सबसे अच्छा व्यक्ति कौन है।'
महात्मा बोले, 'हे राजन, इन तीनों प्रश्नों का उत्तर तो तुमने पा लिया है। फिर भी सुनो। सबसे उत्तम समय है वर्तमान। आज तुमने वर्तमान समय का सदुपयोग करते हुए मेरे काम में हाथ बंटाया और वापस जाने को टाला, जिससे तुम बच गए। अन्यथा वह व्यक्ति बाहर तुम्हारी जान ले सकता था। और जो सामने आ जाए, वही सबसे बढि़या काम है। आज तुम्हारे सामने बगीचे का कार्य आया और तुम उसमें लग गए। वर्तमान को संवार कर उसका सदुपयोग किया। इसी कर्म ने तुम्हें दुर्घटना से बचाया। और बढि़या व्यक्ति वह है, जो प्रत्यक्ष हो। उस आदमी के लिए अपने दिल में सद्भाव लाकर तुमने उसकी सेवा की, इससे उसका हृदय परिवर्तित हो गया और तुम्हारे प्रति उसका वैर भाव धुल गया। इस प्रकार तुम्हारे सामने आया व्यक्ति, शास्त्रानुकूल कार्य व वर्तमान समय उत्तम हैं।' जीवन के इस रहस्य को जान कर राजा महात्मा के सामने नतमस्तक हो गए।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें