मंगलवार, 8 फ़रवरी 2011

द्रोपदी पांचो भाइयों की पत्नी

महाभारत में अब तक आपने पढ़ा द्रोपदी का स्वयंवर जीतने के बाद अर्जुन और सभी भाई घर पहुंचते हैं और द्रोपदी से कहते हैं मां हम भिक्षा लाए हैं और द्रोपदी बिना देखे ही कह देती है पांचो भाई बांट लो अब आगे...

जब कुन्ती ने देखा कि यह तो साधारण भिक्षा नहीं, राजकुमारी द्रोपदी है तब तो उन्हें बड़ा पछतावा हुआ। वे हाथ पकड़कर युधिष्ठिर के पास ले गई और बोलीं- बेटा मैने आज तक कोई बात झूठ नहीं कही है। अब तुम कोई ऐसा उपाय बताओ जिससे द्रोपदी को तो अधर्म ना हो और मेरी बात झूठी भी ना हो। युधिष्ठिर ने कुछ देर विचार किया और अर्जुन को कहा भाई तुमने मर्यादा के अनुसार द्रोपदी को प्राप्त किया है। अब तुम विधि पूर्वक अग्रि प्रज्वलित करके उसका पाणिग्रहण करो।अर्जुन ने कहा आप मुझे अधर्म का भागी मत बनाइये। सत्पुरूषों ने कभी ऐसा आचरण नहीं किया। पहले आप, तब भीमसेन फिर मैं और फिर नकुल व सहदेव विवाह करें। इसलिए इस राजकुमारी का विवाह तो आप ही के साथ होना चाहिए।सभी पाण्डव अर्जुन का वचन सुनकर द्रोपदी की तरफ देखने लगे। उस समय द्रोपदी भी उन्ही लोगों की ओर देख रही थी। द्रोपदी के सौन्दर्य, माधुर्य और सौशील्य से मुग्ध होकर पांचो भाई एक-दूसरे को देखने लगे। तब युधिष्ठिर ने सभी भाइयों के मन भाव जानकर और महर्षि व्यास के वचनों को स्मरण कर कहा द्रोपदी हम सभी भाइयों की पत्नी होगी।उसके बाद श्री कृष्ण और बलराम उनके निवास स्थान पर पहुंचे। धर्मराज युधिष्ठिर के चरणों को स्पर्श किया अपने नाम बताये। उसके बाद पांडवों ने उनका बड़े अच्छे से स्वागत सत्कार किया। उसके बाद थोड़ी देर बाद उन्होने कहा अब हमें चलना चाहिए नहीं तो लोगों को पता चला जाएगा।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें