शनिवार, 26 फ़रवरी 2011

सूर्यास्त के बाद ही शादी क्यों!

शादी एक ऐसा मौका होता है जब दो इंसानो के साथ-साथ दो परिवारों का जीवन भी पूरी तरह बदल जाता है। ऐसे में विवाह संबंधी सभी कार्य पूरी सावधानी और शुभ मुहूर्त देखकर ही किए जाते हैं। विवाह में सबसे मुख्य रस्म होती है फेरों की।
हिन्दू धर्म के अनुसार सात फेरों के बाद ही शादी की रस्म पूर्ण होती है और हमारे धर्म में गौधूली बेला में फेरे करवाए जाना सबसे श्रेष्ठ माना जाता है। गोधूली बेला यानी संध्या का समय जब गायें जंगल से लौटकर आती है। तब उनके पैरों से धूल उड़ती है। उस समय को गौधूली बैला कहा जाता है।
हिन्दू मान्यता के अनुसार गाय में लक्ष्मी का निवास होता है और जब गायें लौटकर आती हैं तो ऐसा माना जाता है कि लक्ष्मी अपने घर आती है। इसलिए संध्या के इस समय ही गृहलक्ष्मी को अपने घर की बहू बनाया जाता है ताकि उसके आने से घर में हमेशा सुख-संपदा बनी रहे।
साथ ही संध्या के इस समय को सूर्य और चन्द्रमा के मिलन का समय माना गया है। जिस तरह इस समय होने वाला सूर्य और चन्द्रमा का मिलन हमेशा के लिए अमर रहता है। उसी तरह इस समय वर-वधु की शादी को अधिक महत्व दिया गया ताकि उनकी जोड़ी हमेशा के लिए सूर्य और चन्द्र की तरह अमर रहे।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें