महात्मा सूतजी प्रयाग में एकत्रित हुए संतजनों को शिवमहापुराण की कथा सुना रहे हैं। संतजन सूतजी से पूछते हैं कि सभी देवताओं का पूजन मूर्ति रूप में ही किया जाता है परंतु एकमात्र भगवान शिव का ही पूजन मूर्ति व लिंग दोनों रुपों में किया जाता है क्यों?
तब सूतजी कहते हैं कि एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण इन्हें सकल (आकार सहित) भी कहा गया है। इस प्रकार भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो निष्कल व सकल दोनों हैं। शिव के निष्कल अर्थात निराकार स्वरूप का ही पूजन लिंग रूप में किया जाता है। इसी तरह शिव के सकल अर्थात साकार स्वरूप का पूजन मूर्ति के रूप में किया जाता है। निष्कल व सकल(समस्त अंग आकारसहित साकार व अंग-आकार स सर्वथा रहित निराकार) रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है कि एकमात्र शिव का पूजन लिंग व मूर्ति के रूप में किया जाता है। शिव से भिन्न जो दूसरे देवता हैं, वे साक्षात ब्रह्म नहीं है इसलिए उनकी पूजा मूर्ति रूप में नहीं होती।
तब सूतजी कहते हैं कि एकमात्र भगवान शिव ही ब्रह्मरूप होने के कारण निष्कल (निराकार) कहे गए हैं। रूपवान होने के कारण इन्हें सकल (आकार सहित) भी कहा गया है। इस प्रकार भगवान शिव ही एकमात्र ऐसे देव हैं जो निष्कल व सकल दोनों हैं। शिव के निष्कल अर्थात निराकार स्वरूप का ही पूजन लिंग रूप में किया जाता है। इसी तरह शिव के सकल अर्थात साकार स्वरूप का पूजन मूर्ति के रूप में किया जाता है। निष्कल व सकल(समस्त अंग आकारसहित साकार व अंग-आकार स सर्वथा रहित निराकार) रूप होने से ही वे ब्रह्म शब्द से कहे जाने वाले परमात्मा हैं। यही कारण है कि एकमात्र शिव का पूजन लिंग व मूर्ति के रूप में किया जाता है। शिव से भिन्न जो दूसरे देवता हैं, वे साक्षात ब्रह्म नहीं है इसलिए उनकी पूजा मूर्ति रूप में नहीं होती।
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