बुधवार, 9 फ़रवरी 2011

करोड़ांे रुपए का वारा -न्यारा

दवा खरीदी में करोड़ों का खेल
वेटनरी विभाग में महंगी दवाएं खरीदने के नाम पर करोड़ांे रुपए का वारा -न्यारा किया जा रहा है। दवाएं जिला स्तर पर खरीदने के बजाए पब्लिक सेक्टर यूनिट से खरीदी के निर्देश दिए गए जबकि पीएसयू की दवाएं 25 से 83 फीसदी तक मंहगी हैं।
विभाग को 31 मार्च तक लगभग 6 करोड़ रुपए की दवाएं खरीदनी है।दैनिक भास्कर ने दो माह पहले वेटनरी डिपार्टमेंट में 2 करोड़ की दवाएं नियम विरुद्ध खरीदी का भंडाफोड़ किया था। अब छह करोड़ का मामला सामने आया है। दरअसल पीएसयू से दवा क्रय करने पर प्राफिट का बड़ा मार्जिन है।
इसी फायदे का क्रेताओं और विक्रेताओं में कथित तौर पर बंटवारा होता है। हालांकि अफसर जानते हैं कि किसी भी दूसरे जिले की अनुमोदित दर सूची को संबंधित जिला द्वारा जिला पंचायत के जरिए अनुमोदन कर खरीदी करने से शासन को 25 से 83 प्रतिशत तक फायदा हो सकता है। अंतर के पैसों से किसानों के लिए ज्यादा दवाएं खरीदी जा सकती हैं।

दुर्ग, राजनांदगांव, जशपुर, बिलासपुर व रायपुर जिलों में दवा खरीदी नहीं हो सकी है जबकि जगदलपुर, कांकेर, दंतेवाड़ा, रायगढ़, अंबिकापुर, महासमुंद जिलों में आर्डर होने के बाद भी दवाएं नहीं पहुंची हैं। बिलासपुर में ऐलोपैथिक व रायपुर में ड्रेसिंग मटेरियल क्रय करना बाकी है।
पीएसयू कंपनियां ज्यादातर दवाएं अन्य कंपनियों से बनवाकर केवल मार्केटिंग करती हैं। 2010-11 में हुई निविदा में जो दर सूची अनुमोदित हुई है उसमें सीधे निर्माता फर्मो ने रेट दिए हैं। आक्सीटेट्रासाइक्लीन इंजेक्शन (100 एमएल) (टेरामाइसिन, फाइजर) बेहद प्रचलित दवाई है। इसका खुदरा मूल्य 35.35 रुपए है जबकि इसे 40.80 रुपए में लाखों रुपए का खरीदा गया है।
मंत्री ने दिए जिला स्तर पर खरीदी के निर्देश
विभागीय मंत्री चंद्रशेखर साहू ने स्वयं संचालनालय के बजाए जिला स्तर पर ही खरीदी के निर्देश दिए । अफसरों ने जिला स्तर की निविदाओं में ऐसी शर्तें व पेंच डाल दिए कि प्रदेश के दवा सप्लायरों ने टेंडर में भाग लेना बंद कर दिया। इससे अधिकारी अपने मकसद में कामयाब हो गए। अब आनन-फानन में बजट लैप्स होने का हवाला देकर पीएसयू के जरिए खरीदी के निर्देश दिए गए हैं।

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