शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

कैसे हो गई अग्रि को आहूति से अपच!

तब जन्मेजय ने वैशम्पायनजी से कहा कि अग्रि ऐसा क्यों करना चाहते थे। तब वैशम्पायनजी ने कहा प्राचीन समय की बात है। श्वेतकि नाम का एक राजा था। वह ब्राहा्णों का बहुत सम्मान करता था। उसने कई बड़े-बड़े यज्ञ किए। अन्त में जब सब ब्राहा्रण थक गए। तब राजा ने भगवान शंकर की तपस्या की। भगवान शंकर को प्रसन्न करके ऋषि दुर्वासा से एक महान यज्ञ करवाया।
राजा श्वेतकि अपने परिवार के साथ स्वर्ग सिधारे। उस यज्ञ में बारह वर्ष तक अग्रि देव को लगातार घी की अखण्ड आहूतियां दी गई। जिसके कारण उनकी पाचन शक्ति कमजोर हो गई। रंग फीका पड़ गया और प्रकाश मन्द हो गया। जब अपच के कारण वे परेशान हो गए तो ब्रम्हा जी के पास गए। ब्रहा्रजी ने कहा तुम खांडव वन को जला दो तो तुम्हारी अरूचि खत्म हो जाएगी। अग्रि देव ने सात बार वन जलाने की कोशिश की लेकिन इन्द्र ने उन्हें सफल नहीं होने दिया।

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