शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2011

भागवत २०१: यह खबर सुनकर यशोदा दुखी हो गई

मथुरा प्रस्ताव से यशोदा दुखी-यह सारी बात जब यशोदा तक पहुंची, तो उनका दिल बैठ गया। यह अकू्रर नहीं क्रूर है। मेरे लला को मत जाने दो। वह चला जाएगा, तो गोकुल उजड़ जाएगा और यदि ले जाना ही है तो बलराम को ले जाओ। कन्हैया को मत ले जाओ। सुना है मथुरा की नारियां बहुत जादूगरनी होती हैं। कुछ ऐसा टोना कर देंगी कि मेरा कन्हैया वापस नहीं आ सकेगा। यशोदा नन्दजी से विनती करती हैं। यदि तुम्हें मथुरा जाना है तो चले जाओ। किन्तु लला को न ले जाओ। वहां उसकी देखभाल कौन करेगा। वह बड़ा शर्मीला है भूखा होने पर मांगता नहीं। उसको मनाकर कौन खिलायेगा। दो तीन दिन पहले ही मैंने बुरा सपना देखा था। मेरा लला मुझे छोड़कर हमेेशा के लिए मथुरा जा रहा है। नन्दबाबा ने यशोदा को ढांढस बंधाते हुए समझाया। कन्हैया 11 बरस का तो हुआ है अब कितने दिनों तक तू उसे अपने घर में रखेगी। उसे बाहर का जगत भी देखना चाहिए। मैं अब उसे गोकुल के राजा बनने योग्य बनाना चाहता हूं। हम दो-चार दिन में मथुरा घूम-फिरकर वापस लौट आएंगे। तू चिन्ता मत कर। मैं इस वृद्धावस्था में कन्हैया के लिए तो जी रही थी। यही तो आधार है मेरा। रात आई, सब सो गए। किन्तु यशोदा की आंखों से नींद दूर चली गई थी। न जाने कल क्या होगा। कन्हैया चला जाएगा। मैं अकेले कैसे जी पाऊंगी।
बार-बार आंगन में आकर सिसकियां भरने लगीं। कन्हैया की आंखें अचानक खुल गईं तो देखा कि सेज पर माता नहीं थी। वह उसे इधर-उधर ढूंढने लगा। माता के गले में हाथ डालकर उसके आंसू पोंछते हुए रोने का कारण पूछने लगा। तू क्यों रोती है मां। तू रोती है तो मुझे बड़ा दुख होता है। कन्हैया की बात सुनकर माता को कुछ तसल्ली हुई। वह कहने लगी वैसे तो कोई विशेष बात नहीं है। तू कल जा रहा है सो मेरी आंखें बरस रही हैं। मुझे छोड़कर तू कहीं भी न जाना। मैं तेरे ही सहारे जी रही हूं। कन्हैया माता को आश्वासन देते हैं तू क्यों चिन्ता करती है मां, मैं जरूर वापस आऊंगा। यद्यपि लला ने यह नहीं बताया कि वह कब लौटेगा माता ने भी नहीं पूछा। वह तो लला के वापस आने की बात सुनकर प्रसन्न हो गई। वह अवष्य लौटेगा, वापस आने की बात सुनकर वह आनन्द में इतनी मग्न हो गई कि यह पूछना ही भूल गई कि वह लौटेगा तो कब लौटेगा। यशोदा ने लला से कहा कि चल अब हम सो जाएं। मां और बेटे दोनों एक ही सेज पर सो गए। आज श्रीकृष्ण ने यशोदा के हृदय में प्रवेश किया। अब कन्हैया बाहर नहीं भीतर ही दिखाई देगा। गोकुल से विदाई-प्रात:काल हुआ, मंगलस्नान समाप्त हुआ, तो माता कन्हैया का श्रृंगार करने लगी। तेरा मनोहर रूप अब मैं कब देख पाऊंगी कन्हैया। कन्हैया ने वापस आने का पुन: वचन दिया। यषोदाजी का मन आज अधीर हो उठा। उन्होंने स्वयं भोजन बनाया और कन्हैया को खिलाया। अक्रुरजी रथ लेकर आंगन में आए। जब गोपियों को समाचार मिला तो वे दौड़ती हुई आ पहुंची। उनमें राधिकाजी भी थीं। उनके मुख पर दिव्य तेज फैला हुआ था और साध्वी जैसा उनका श्रृंगार था। आज तक कभी वियोग हुआ नहीं था। सो आज वियोग का प्रसंग उपस्थित हुआ तो राधिकाजी अचेत-सी हो गईं। वे अचेतावस्था में ही कहने लगीं कि हे प्यारे कृष्ण! मेरा त्याग मत करो, हमें छोड़कर मत जाओ।

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