शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

...और सती ने दे दी खुद की आहूति

शिवजी ने सत्तासी हजार साल पूरे होने के बाद अपनी समाधी खोली। शिवजी समाधी से उठकर राम नाम का जप करने लगे। सती समझ गई कि शिवजी समाधी से जाग गए हैं। उसके बाद उन्होंने शिवजी को प्रणाम किया। सती शिव के सामने आसन लगाकर बैठ गई। शिवजी सती को कहानियां सुनाने लगे। इधर दक्ष प्रजापति बनाए गए। दक्ष को इतना बड़ा अधिकार पाकर अभिमान आ गया। एक बार दक्ष ने बड़े यज्ञ का आयोजन किया। उन्होंने ब्रहा्र, विष्णु, और महेश को छोड़कर सभी देवताओं और ऋषियों को आमंत्रित किया। सभी देवता अपनी पत्नीयों सहित विमान सजाकर दक्ष के यहां जा रहे थे।
सती ने देखा कि कई सुन्दर विमान आकाश में जा रहे हैं। सती ने पूछा तब शिव ने उन्हें बतलाया की उनके पिता के घर यज्ञ हो रहा है। पिता के घर यज्ञ की बात सुनकर सती ने वहां जाने की आज्ञा शिव जी से मांगी। तब शिवजी ने निमंत्रण ना दिए जाने की बात कही। लेकिन सती बोलने लगी की मेरे पिता के घर पर इतना बड़ा उत्सव है। अगर आप आज्ञा दें तो मैं भी देखना चाहती हूं। तब शिव ने बोला कि एक बार ब्रहा्र की सभा में आपके पिता अप्रसन्न क्या हुए? उसी कारण वे अभी भी हमारा अपमान करते हैं और उन्होंने तुम्हे भी भुला दिया।
इस बात में संदेह नहीं हैं कि मित्र, स्वामी, पिता और गुरु के घर बिना बुलाए भी जा सकते हैं। लेकिन आपका वहां जाना हमें उचित नहीं लगता। शिवजी ने उन्हे बहुत समझाया लेकिन सती नहीं रूकी। सती जब अपने पिता के घर पहुंची तो पिता ने उनकी कुशलता के समाचार नहीं पूछे। सिर्फ उनकी माता ने ही उनकी कुशलता का समाचार लिया। सती ने जब यज्ञ में शिव का भाग ना देखा तो उन्हें बहुत दुख हुआ। शिवजी का अपमान उनसे देखा नहीं गया और उन्होंने योगाग्रि में अपना शरीर भस्म कर डाला।
(www.bhaskar.com)

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