शनिवार, 19 फ़रवरी 2011

काम को बोझ न समझें

हम जो भी काम करते हैं उसे सिर्फ एक औपचारिकता की तरह न करें। यदि काम सिर्फ औपचारिकता बन जाएगा तो न तो आपको उसमें कुछ मजा आएगा और काम सिर्फ बोझ बन कर रह जाएगा। जो भी काम करें, उसका पूरा आनंद लें ताकि काम बोझ न बने।
एक मंदिर का निर्माण हो रहा था। निमार्ण में तीन मजदूर बाहर काम कर रहे थे। वहां एक व्यक्ति आया और तीनों को काम करते हुए देखा। जो महात्मा मंदिर का निर्माण करवा रहे थे, उस व्यक्ति ने उनसे पूछा कि किसी भी काम को किस तरीके से करना चाहिए? महात्मा बोले- मैं तेरे इस प्रश्न का जबाव अवश्य दूंगा लेकिन पहले तू ये जो तीन मजदूर काम कर रहे रहे हैं इनसे पूछकर आ कि तुम क्या कर रहे हो?
वह आदमी गया और उसने पहले मजदूर से पूछा जो पत्थर तोड़ रहा था कि तुम क्या कर रहे हो तो उसने गुस्से में बोला दिखता नहीं पत्थर तोड़ रहा हूं। दूसरे से पूछा, उसने कहा भैया नौकरी कर रहा हूं । पापी पेट के लिए, बच्चों को पालने के लिए काम करना ही पड़ता है। तीसरे से जाकर पूछा तो उसने कहा - पूजा कर रहा हूं, आनंद मना रहा हूं। ये पत्थर मंदिर में लगेंगे यह जानकर मुझे बड़ी मस्ती आ रही है।
तीनों का उत्तर लेकर वह महात्मा के पास गया। महात्मा ने कहा काम का यही फर्क है। तुम अपने काम को उन दो मजदूरों की तरह बना सकते हो। जो गुस्से में या मजबूरी में यह काम कर रहे हैं या उस व्यक्ति की तरह कर सकते हो जो मजा ले रहा है, आनंद लेकर पत्थर तोड़ रहा है। यह सिर्फ अपना-अपना नजरिया है कि हम अपना काम किस तरह कर रहे हैं।

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