गुरुवार, 10 फ़रवरी 2011

हिंदू धर्म के लक्षण

सभी को धारण करने वाला स्वयं धारण करने योग्य तथा समस्त प्राणियों को पूर्णता की ओर अग्रसर करने वाला अतिमहत्वपूर्ण कारक धर्म है।
विद्वानों ने धर्म के दस लक्षण बताए हैं:धृति, क्षमा, यम, नियम, चोरी न करना, मन, वाणी और शरीर की पवित्रता, इंद्रियों का संयम, सद्बुद्धि, विद्या, सत्य बोलना और क्रोध न करना।दया, क्षमा, सत्यता, दान, अहिंसा, नम्रता, प्रीति, प्रसन्नता, प्रेम वचन और कोमलता ये दस नियम हंै। पवित्रता, यज्ञ, तप, दान, स्वाध्याय, ब्रह्मचर्य, व्रत, मौन, उपवास और स्नान ये दस नियम है।अपना हो या पराया, भाई हो या बैरी, शत्रु हो या मित्र, चाहे जो भी हो यदि वह मुसीबत और कष्ट में हो तो उसकी सहायता और रक्षा करना प्रत्येक मनुष्य का कर्तव्य है। मनुष्य की इसी उदार भावना को दया और करुणा कहा जाता है।हिंदू धर्म की मान्यता है कि पाप करने वाले के साथ-साथ उसकी सहायता करने वाला और साथ देने वाला भी पाप का भागीदार बनता है। उदाहरण के लिए मांस खाने वाला ही नहीं, खाने की राय देने वाला, जीव की हत्या करने वाला,उसको लाने वाला, बचने वाला, पकाने वाला, परोसने वाला आदि सभी व्यक्ति पाप के समान भागीदार है।हिंदू धर्म की मान्यता है कि ग्रहस्थ के घर चूल्हा, चक्की, ओखली, पानी के घड़े, से जीवों की हिंसा होती है। ये पांच स्थान हिंसा के हंै। इनसे मनुष्य पाप में बंधता है। गृहस्थ को इन दोषों से मुक्त करने के लिए ऋषि-मुनियों ने पंच महायज्ञ करने को कहा है। विद्या का प्रसार करना ब्रह्म यज्ञ है, माता-पिता की सेवा करना एवं पितरों का तर्पण करना पितृ यज्ञ है, हवन करना देव यज्ञ है। बलिवैश्वदेव भूत यज्ञ है, अतिथि सत्कार मनुष्य यज्ञ है। ये ही पांच महायज्ञ हैं।
गुरुजनों, माता-पिता एवं बड़ों की सेवाअज्ञान रूपी अंधकार से ज्ञान रूपी प्रकाश की ओर ले जाने वाली गुरु सत्ता, जन्म से लेकर बड़े होने तक तप, त्याग और कष्टपूर्वक पालन-पोषण करने वाले माता-पिता तथा बड़े भाई, चाचा, ताऊ, बुजुर्ग एवं अन्य वरिष्ठ जन अत्यंत आदर एवं सम्मान के पात्र हैं। गुरु एवं माता-पिता के उपकारों से ऋण मुक्त होना तो संभव नहीं हैं किंतु इनकी सेवा, आज्ञा का पालन एवं सम्मान करना प्रत्येक हिंदू का धर्म कर्तव्य है।गुरु, माता-पिता, बड़ों, बुर्जुगों आदि का सम्मान एवं सेवा करने वालों की आयु, विद्या, यश और बल चारों बढ़ते हैं।

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