शनिवार, 12 फ़रवरी 2011

छिपा दर्द

सरकारी अस्पताल से निकलकर, मैं सामने खडी टैक्सी पर बैठ गया। तभी एक महिला अपने नवजात शिशु को कपडे में लपेटे, सामने की सीट पर आकर बैठ गयी।
साथ ही एक बूढी स्त्री भी। उसके चेहरे पर पीडा की झलक साफ देखी जा सकती थी। मैंने सोचा प्रसव के कारण मां को दर्द हो रहा होगा। तभी उसी अस्पताल की एक नर्स भी आकर मेरे पास बैठ गयी। बच्चे को देखते ही उसने मां को झडका, उसे बंद करो, बाहर की हवा नुकसान करेगी। मां ने जल्दी से उसे कपडे में फिर से पूरी तरह से लपेट कर अपने-आप से चिपका लिया। लेकिन चेहरे पर अब भी वही भाव थे।
नर्स ने पूछा, लडका है या लडकी? लडकी आय बिटिया, यह मारे तौ कोई यहकी ससुरार से आवा नाई। पास बैठी बूढी औरत ने कहा। यह सुनकर मां की आंखों में आंसू छलछला उठे। शायद मन में छिपा दर्द आंसू बनकर आंखों के रास्ते अब बाहर आ रहा था। [विष्णुप्रताप सिंह] पवन ग्राम- नन्दना, पोस्ट- कोटवा, बख्शी का तालाब, लखनऊ (उ.प्र.)

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें