मंगलवार, 15 फ़रवरी 2011

हिंदू संस्कृति का संक्षिप्त रूप

हिंदू धर्म की दृष्टि में धर्म, संस्कृति, जीवन तीनों का विस्तार समान है। तीनों एक दूसरे में समाहित (घुले-मिले) हंै। हिंदू संस्कृति समन्वय प्रधान है। इसीलिए वसुदेव कुटुम्बकम हिंदू संस्कृति का मूल भाव माना गया है। विश्व के साथ समभाव प्राप्त करने की पद्धति समन्यव है। विश्व के अन्य प्राचीन धर्म एवं संस्कृतियां आज लुप्त हो चुके हैं, किंतु हिंदू धर्म अपनी सहिष्णुता की प्राण वायु से आज तक जीवित है। बहुलता मे एकत्व की पहचान हिंदू संस्कृति का प्रयत्न रहा है। जड़ व चेतन का अपेक्षित मुल्यांकन हिंदू धर्म व संस्कृति की विशेषता है। भौतिक जीवन की नश्वरतासांसारिक सुख-भोग क्षणिक व नश्वर है, तथा ये त्यागने योग्य हंै ऐसी दृढ़ मान्यता हिंदू धर्म की अपनी विशिष्ट पहचान है। लोक और परलोक का समन्वय प्राप्त करने की प्रवृति हिंदू धर्म की मूल भावना है। हिंदू धर्म व संस्कृति में साहित्य, कला, सौदंर्य और संयमित जीवन के अनेक वरदानों को प्रतिष्ठित स्थान दिया गया है। धर्म और जीवन का मेल हिंदू संस्कृति के आग्रह का विषय है। अध्यात्म की साधना, त्याग और सच्चरित्रता हिंदू संस्कृति के आग्रह का विषय है। हिंदू धर्म और संस्कृति में कर्म पर विशेष जोर दिया गया है। गीता में स्वयं भगवान कृष्ण ने बहुत सुंदर व उत्तम उपदेश दिया है जिसे मानना हर हिंदू का धर्म कत्र्तव्य है।आध्यात्मिक जीवनहिंदू धर्म व संस्कृति लौकिक विजय से इतनी तृप्त नहीं होती जितनी आध्यात्मिकता से प्रफुल्लित, तृप्त एवं संतुष्ट होती है। सांसारिक विजय और उपलब्धि के भीतर लोभ, स्वार्थ और ङ्क्षहसा छिपे हैं। जबकि आध्यात्मिकता केवल धर्म और आत्म ज्ञान पर आधारित है। हिंदू धर्म में निहित उपासना, साधना एवं संस्कार मनुष्य को जन्म से लेकर देहांत तक आध्यात्मिक जीवन के लिए तैयार करते हैं। हिंदू धर्म परोपकार, त्याग, संयम, क्षमा, दया, करुणा, अहिंसा, सत्य, प्रेम, ईमानदारी, कर्तव्यनिष्ठा, सेवा, नि:स्वार्थता आदि सदुगुणों की संयुक्त मूर्ति है। जिसमें उपरोक्त सभी गुण निहित हैं। वही सच्चा हिंदू कहलाने का अधिकारी है।

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