बुधवार, 16 फ़रवरी 2011

यह देखकर माता सती का मन संदेह से भर गया...

गोस्वामी तुलसीदासजी की सबसे श्रेष्ठ रचना रामचरितमानस की शुरुआत श्री गणेश वंदना से होती है। रामचरितमानस का पहला कांड बालकांड है। बालकांड में श्री रामजी के जीवन की कहानी माघ स्नान से शुरू होती है। जब सूर्य मकर राशि में जाता है। तब सब लोग तीर्थराज प्रयाग आते हैं। इसी प्रकार एक बार याज्ञवल्क्य और भारद्वाज दोनों ही माघ स्नान के लिए पहुंचे। दोनों की भेंट हुई। भारद्वाज मुनि ने याज्ञवल्क्य जी से श्री रामजी की कथा सुनाने की प्रार्थना की। तब याज्ञवल्क्य जी ने कहा मन लगाकर सुनो मैं श्री राम जी की कथा सुनाता हूं।

एक बार की बात है। शिवजी त्रैतायुग में अगस्त्य ऋषि के पास गए। उनके साथ सतीजी भी थी। ऋषि ने उन्हें सम्पूर्ण जगत जानकर उनका पूजन किया। उन्होंने मुनि श्री से रामकथा सुनाने का निवेदन किया। अगस्त्य ऋषि ने उन्हे रामकथा सुनाई। श्री रघुनाथ जी की कथा कहते-सुनते शिव जी कुछ दिनों तक वहां रहे। फिर वहां से विदा मांगकर। शिवजी दक्षकुमारी सतीजी के साथ घर को चले। शिव जी यह सोचते हुए जा रहे थे कि भगवान के दर्शन मुझे किस प्रकार हों? प्रभु ने गुप्तरुप से अवतार लिया है मेरे जाने से सब लोग जान जाएंगे। शंकर जी के मन में इस बात को लेकर बड़ी खलबली थी। लेकिन सती जी ये नहीं जानती थी।
शिव जी के मन में डर था लेकिन उनके नेत्र दर्शन को ललचा रहे थे। रावण ने अपनी मृत्यु मनुष्य के हाथ से मांगी थी। ब्रह्माजी के वचनों को प्रभु सत्य करना चाहते हैं मैं उनके पास नहीं जाता हूं तो बड़ा पछतावा रह जाएगा। इस प्रकार महादेव जी चिन्ता के वश में हो गए। उसी समय नीच रावण ने जाकर मारिच को साथ लिया और वह तुरंत कपटमृग बन गया। मुर्ख रावण ने कपट से सीता जी को हर लिया। मृग को मारकर लक्ष्मण सहित श्री हरि आश्रम आये उसे खाली देखकर उनकी आंखों में आंसु भर आए। विरह में व्याकुल दोनों भाई सीता को खोजते हुए फिर रहे हैं। शिव जी ने उसी अवसर पर श्रीराम को देखा तो उन्हें बहुत आनंद हुआ लेकिन अवसर ठीक ना जानकर उन्होने परिचय नहीं दिया।शिव जी बार-बार राम को देख कर प्रसन्न हो रहे थे और सतीजी के साथ चले जा रहे थे।
सतीजी ने उनकी यह दशा देखी तो उन्हें बड़ा संदेह हुआ कि शिवजी ने एक राजपुत्र को सच्चिदानंद कहकर प्रणाम किया और उनकी शोभा देखकर उन पर मुग्ध हो गए। उन्हे संदेह हुआ की जो सर्वव्यापक, अगोचर, इच्छारहित और भेदरहित है, और जिसे वेद भी नहीं जानते क्या वह देह धारण कर सकता है ? उन्होंने सोचा कि जो भगवान विष्णु स्वयं शिव के समान है वे क्या एक अज्ञानी की तरह स्त्री को खोजेंगे। यह सोचकर माता सती के मन में अपार संदेह उठ खड़े हुए
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