गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

नली और पानी का खेल

पानी से भरे एक गिलास में प्लास्टिक या कांच की एक नली डालिए। आप देखेंगे कि नली में पानी की सतह गिलास के पानी की सतह से ऊपर उठ जाएगी। ऐसा क्यों होता है, जानते हैं इस बार की विज्ञान प्रोयगशाला में..
सबसे पहले तीन-चार अलग-अलग व्यास की नलियां लीजिए, इन्हें पानी से भरे गिलास में रखिए। आपको आश्चर्य होगा कि इन सब में पानी की सतह अगल-अलग ऊंचाइयों तक चढ़ गई है। गिलास के पानी की सतह शांत और सपाट है, जबकि नलियों में ये विभिन्न ऊंचाइयों तक है। आप देखेंगे कि सबसे पलती नली में पानी की सतह सबसे ऊंची और सबसे मोटी नली में सबसे नीची है।
पहले एक टेस्ट ट्यूब या पतली लम्बी कोई गोल बोतल लीजिए और इसे पानी से आधा भर दीजिए। अब बोतल में पानी की सतह को ज़रा ध्यान से देखिए। बोतल में पानी की सतह किनारों पर ऊंची और बीच का भाग दबा हुआ नज़र आएगा। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पानी का कुछ भाग नली या बोतल की दीवार द्वारा आकर्षित कर लिया जाता है। इस क्रिया को केशिका क्रिया (capillary action) कहते हैं।
इस क्रिया में लगा बल आसंजन बल (adhesion) कहलाता है। सबसे पतली नली में केशिका प्रभाव सबसे ज्यादा क्रियाशील रहता है, क्योंकि इस स्थिति में नली में पानी की सतह के एक बहुत बड़े भाग का किनारों से सीधा सम्पर्क होता है।
केशिका क्रिया के कारण ही पानी से भरे एक गिलास में जब हम प्लास्टिक या कांच की नली डालते हैं, तो नली में पानी की सतह गिलास के पानी की सतह से ऊपर उठ जाती है। यदि नली में पानी भरने से पहले ग्रीस लगा दिया जाए, तो पानी की सतह अंदर की तरफ दबने की जगह ऊपर की तरफ उभरी हुई नज़र आएगी। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि पानी के अणु ग्रीस द्वारा उतनी शक्ति से आकर्षित नहीं किए जाते, जितने कांच या प्लास्टिक द्वारा किए जाते हैं। इस स्थिति में पानी के अणुओं का आपसी खिंचाव ग्रीस द्वारा उत्पन्न खिंचाव से अधिक पड़ता है, जिसे आसंजन नहीं बल्कि ससंजन बल (cohesion) कहा जाता है।

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