गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

कैसे निकली अकड़ू की अकड़?

यदि आप कोई अच्छा काम करते हैं, तो भगवान आपको उसका अच्छा फल ज़रूर देते हैं। ऐसा ही अकड़ू के साथ भी हुआ था, लेकिन अकड़ू के लालच ने अकड़ू की खूब हंसी उड़वाई.. और उसका फायदा उसके नुकसान में तब्दील हो गया।
लालपुर नगरी में एक अकड़ू नाम का बदमाश रहता था। अकड़ू एक वन माफिया का हिस्सा था। वह चोरी-छिपे जंगल से लकड़ियां काटता और उन्हें बेचा करता था। लकड़ियां बेचकर वो ढेर सारा धन कमाता और उसी से अपना घर-परिवार चलाता। वह बहुत ही लालची और पैसों का भूखा था।

एक बार अकड़ू जंगल में पेड़ों को काट रहा था। पेड़ काटते-काटते वह थक गया और आराम करने के लिए वहीं हरी घास पर बैठ गया। घास पर सुस्ताते-सुस्ताते उसकी नज़र पास ही झाड़ियों के काटों में उलझी एक सुंदर तितली पर पड़ी। कांटों में फंसकर वह बेचारी छटपटा रही थी। अकड़ू ने ऐसी सुनहरी तितली इससे पहले कभी नहीं देखी थी। वह उसे अपलक देखता ही रह गया। फंसी तितली देख, पहली बार उसके मन में दया का भाव जागृत हुआ। उसे लगा कि इस सुंदर तितली को बचाना चाहिए। अकड़ू उठकर तितली के नज़दीक गया।
उसने धीरे-धीरे उस तितली को कांटों से बाहर निकाला और घास पर छोड़ दिया। उसने तितली को छोड़ा ही था कि एक चमत्कार हुआ। वह तितली देखते ही देखते एक सुंदर परी बन गई। तितली को सुंदर परी में तब्दील होते देख वो दंग रह गया। ऐसी परी का ज़िक्र तो उसने सिर्फ दादी-नानी की कहानियों में ही सुना था। उसे अपनी आंखों पर विश्वास नहीं हो रहा था।
परी अकड़ू को अचम्भित देखकर मुस्कुराई और बोली, ‘मैं इन्द्रलोक की परी हूं। मैं जंगल की सैर करने आई थी। एक तितली को देख मेरा मन भी तितली बनने को हुआ। मैं भी उसकी तरह सुगंधित फूलों का आनंद लेना चाहती थी। लेकिन फूल के चक्कर में मैं इन कांटों के बीच ऐसी उलझी कि निकल ही नहीं पाई और मेरी जादुई छड़ी भी हाथों से गिर गई। मुझे छुड़ाकर तुमने मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है। मैं बहुत खुश हूं। इसके बदले मैं तुम्हें ईनाम के रूप में एक यंत्र देना चाहती हूं। तुम जितने भी नए हरे-भरे पौधे लगाओगे और इस यंत्र को उनपर घुमाओगे, उतने ही सोने के सिक्के तुम्हें मिलेंगे।’ यह कहकर परी ने उसे एक चमकीला यंत्र दे दिया।
अकड़ू ध्यान से परी की बात सुन रहा था। यंत्र के साथ-साथ परी ने उसे चेतावनी भी दी, ‘ध्यान रहे, यदि तुमने लालच किया या यंत्र का गलत प्रयोग किया, तो यह अपनी शक्ति खो देगा और तुम्हारा सबकुछ छिन जाएगा। अब मैं चलती हूं। मुझे अपने परीलोक लौटना है।’ अकड़ू परी से कुछ पूछता, उससे पहले ही परी आसमान में दूर कहीं ओझल हो गई।
अकड़ू हाथ में थामे चमकीले यंत्र को चारों तरफ से देखने लगा। वह सारा काम छोड़कर घर आ गया। घर आने के बाद वह परी वाली घटना के बारे में सोचता रहा। उसकी रात भी बड़ी बेचैनी में गुज़री। सुबह होते ही वह अपने आंगन में तुलसी के पौधे लगाने लगा। उसकी पत्नी यह सब देख कर हैरान रह गई, ‘मेरा पति तो पेड़-पौधों का दुश्मन है। अचानक उसके भीतर पेड़-पौधों के प्रति प्रेम की भावना क्यों जाग उठी?’
अकड़ू ने जेब से चमकीली छड़ी निकाली और जैसा परी ने कहा था, ठीक वैसा किया। देखते ही देखते पांच सोने के सिक्के खनखन ज़मीन पर गिर पड़े। पत्नी कुछ समझ नहीं पा रही थी कि यह सब हो क्या रहा है। बाद में अकड़ू ने सारी बात अपनी पत्नी को बताई।
अब अकड़ू रोज़ पेड़ लगाता और रोज़ सोने के सिक्के पाता। उसके पास ढेर सारे सोने के सिक्के हो गए। उसकी झोपड़ी महल में बदल गई। ऐशो-आराम, नौकर-चाकर सब कुछ था उसके पास। अब वह बड़े ही ठाठ से रहने लगा। वह कुछ ही समय में सेठ बन गया।
अकड़ू अब शहर का सबसे अमीर व्यक्ति बनना चाहता था। उसके मन में लालच घर कर गया। उसके मन में एक विचार आया, ‘यदि नदी के किनारे सारे पेड़ों को कटवा कर वहां नए पेड़ लगाए जाएं, तो उसके पास कितने सोने के सिक्के हो जाएंगे।’ सेठ बनने के चक्कर में उसने नदी के किनारे हरे-भरे पेड़ों को कटवा दिया। वह लालच में इतना अंधा हो गया कि वह परी की चेतावनी भूल गया। उसे लगा कि परी अब उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती।
पेड़ों के काटे जाने से पक्षियों का बसेरा छिन गया। जीव-जन्तुओं के लिए घास-फूस भी नहीं रही। नदी का किनारा बिल्कुल सूना हो गया। अब अकड़ू लोगों को यह करामात दिखाना चाहता था। इसके लिए उसने एक भव्य कार्यक्रम का आयोजन किया। इस कार्यक्रम में वह लोगों को दिखाना चाहता था कि वह किस तरह पेड़ लगाकर उससे सोने के सिक्के बरसाता है।
लोगों में भी इस कार्यक्रम को लेकर बड़ी उत्सुकता थी। तय दिन कार्यक्रम का आयोजन हुआ। बड़ी संख्या में लोग कार्यक्रम में पहुंचे। अकड़ू भी कार्यक्रम में पुहंचा। अकड़ू ने पहले एक जगह कुछ पेड़ लगाए। अब उसने ने अपना चमकीला यंत्र निकाला, लेकिन यह क्या यह तो बिल्कुल काला पड़ चुका था। उसने यंत्र पेड़ पर घुमाया लेकिन इस बार पेड़ से सोने के सिक्के नहीं गिरे। लोगों ने अकड़ू का खूब मज़ाक उड़ाया। अकड़ू शर्म से पानी-पानी हो गया। उसका सारा घमंड एक पल में चूर-चूर हो गया। अब अकड़ू को परी द्वारा दी गई चेतावनी याद आई कि लालच करोगे, तो सबकुछ छिन जाएगा। अकड़ू जब घर पहुंचा, तो उसने देखा कि वहां अब महल नहीं बल्कि पहले वाली पुरानी झोपड़ी थी। थोड़े से लालच के कारण अकडू़ की अकड़ निकल गई। (www.bhaskar.com)

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