मंगलवार, 22 फ़रवरी 2011

जब अर्जुन ने बलपूर्वक सुभद्रा को रथ पर बैठा लिया?

वहां से लौटकर अर्जुन फिर एक बार मणिपुर गए। चित्रांगदा के गर्भ से जो पुत्र हुआ उसका नाम बभ्रुवाहन रखा गया। अर्जुन ने राजा चित्रवाहन से कहा कि आप इस लड़के को ले लिजिए। जिससे इसकी शर्त पूरी हो जाए। उन्होंने चित्रांगदा को भी बभ्रुवाहन के पालन-पोषण के लिए वहां रहने की आवश्कता बताई। उसे राजसुय यज्ञ में अपने पिता के साथ इन्द्रप्रस्थ आने के लिए कहकर तीर्थयात्रा पर आगे चल पड़े। वहां उनकी मुलाकात श्री कृष्ण से हुई। वे कुछ समय तक रेवतक पर्वत पर ही रहने लगे। एक बार यदुवंशी बालक सजधजकर टहल रहे थे। गाजे बाजे नाच तमाशे की भीड़ सब ओर लगी हुई थी। इस उत्सव में भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन सब साथ-साथ में घुम रहे थे।

वहीं कृष्ण की बहिन सभुद्रा भी थी। उसके रूप पर मोहित होकर अर्जुन एकटक उसकी ओर देखने लगे।भगवान कृष्ण समझ गए की अर्जुन सुभद्रा पर मोहित हो गए हैं। उन्होंने कहा कि वैसे तो सुभद्रा का विवाह स्वयंवर द्वारा ही होगा लेकिन यह जरू री नहीं है कि वह तुम्हे ही चुनें। इसलिए तुम क्षत्रिय हो तुम चाहो तो उसे हरण करके भी उससे विवाह कर सकते हो। क्षत्रियों में बलपूर्वक हरकर ब्याह करने की भी नीति है। तुम्हारे लिए यह मार्ग प्रशस्त है। भगवान श्री कृष्ण और अर्जुन ने यह सलाह करके अनुमति के लिए युधिष्ठिर के पास दूत भेजा। युधिष्ठिर ने हर्ष के साथ इस प्रस्ताव को स्वीकार किया। दूत के लौटने के बाद श्री कृष्ण ने अर्जुन वैसी सलाह दे दी। एक दिन सुभद्रा रैवतक पर्वत पर देवपूजा करके पर्वत की परिक्रमा की। जब सवारी द्वारका के लिए रवाना हुई। तब अवसर पाकर अर्जुन ने उसे बलपूर्वक रथ में बिठा लिया। सैनिक यह दृश्य देखकर चिल्लाने लगे। बात दरबार तक पहुंची तब सभी यदुवंशीयों में अर्जन का विरोध होने लगा। तब बलराम ने बोला की आप लोग बिना कृष्ण की आज्ञा के उनका विरोध कैसा कर सकते हैं। जब यह बात कृष्ण के सामने रखी गई तो उन्होने क हा कि अर्जुन जैसा वीर योद्धा जिसे शिव के अलावा कोई नहीं हरा सकता वह अगर मेरी बहन का पति बने तो इससे ज्यादा हर्ष की बात और क्या हो सकती है।

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