गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

क्यों सती बन गई सीता?

रामायण में अब तक आपने पढ़ा... शिवजी और सती का अगस्त्य ऋषि सेरामकथा सुनना। सतीजी का रामजी के विष्णुरूप होने पर संदेह करना। अब आगे...

सतीजी का संदेह देखते हुए। शिवजी सब कुछ समझ गये। उन्हें समझाने लगे की देखो सती जिनकी कथा अगस्त्य जैसे महान ऋषि ने हमें सुनाई है। ज्ञानी, मुनि, योगी सभी जिनका ध्यान करते हैं तुम उन पर संदेह कर रही हो। शिवजी ने उन्हें बहुत बार समझाया फिर भी सती नहीं मानी तो शिव जी बोले अगर तुम्हारे मन में संदेह हो तो जाकर परीक्षा क्यों नहीं ले लेती?
जब तक तुम लौटकर आओगी। मैं तुम्हें यहीं पेड़ के नीचे बैठा हुआ मिलूंगा।इधर शिवजी ने मन ही मन यह सोचा कि इसमें सती का कल्याण नहीं है। शिवजी इतना सोचकर ध्यान मग्र हो गए। सती श्री राम की परीक्षा लेने के लिए उस मार्ग पर सीता का रूप धारण कर आगे-आगे चलने लगी। जिस पर राम जा रहे थे। माता सती के बनावटी वेष को देखकर लक्ष्मण आश्चर्य चकित हो गए। वे बहुत गंभीर हो गए लेकिन कुछ ना बोल सके। राम के सामने सती अपने आप को छुपाने का प्रयास करने लगीं। प्रभु ने हाथ जोड़कर सती को अपना परिचय देकर प्रणाम किया और पूछा कि हे देवी आप अकेली इस वन में क्यों घूम रही हैं, भगवान वृषकेतु शिव कहां हैं?
राम की रहस्यमय बाते सुनकर सती घबरा गई और शिवजी के पास लौटने लगी। शिवजी के पास जाते समय उन्हें चिंता सताने लगी कि मैंने शिवजी की बात नहीं मानी। राम के विष्णु का अवतार होने पर संदेह किया। राम ने जान लिया की सती दुखी हैं। राम ने उस समय अपना कुछ प्रभाव प्रकट कर उन्हें दिखलाया। सती को उस समय सीता, राम व लक्ष्मण अपने आगे चलते हुए दिखाई दिए। वे जिधर भी देखती उन्हें राम ही दिखाई देने लगे।
उन्होंने सभी देवताओं को राम की सेवा करते हुए देखा। यह सब देखकर माता सती अपनी सुध खो दी। उन्होंने अपनी आंखें बंद कर ली। जब आंखें खोली तो कुछ भी नहीं था। सती ने सीता का वेश धारण किया यह जानकर शिव बहुत दुखी हुए। तब शंकर जी ने यह निश्चय कर लिया कि सती के शरीर से मेरी भेंट नहीं हो सकती। शिव का रुख देखकर सतीजी को अपनी गलती का एहसास हुआ। शिवजी ने सती को चिंतित देखकर। उन्हें कुछ अच्छी कहानियां सुनाई। जब दोनों कैलाश पर्वत पर पहुंचे
तो शिव ने समाधि लगा ली। माता सती कैैलास पर रहने लगी। सती का एक-एक दिन युग के समान बीतने लगे। शिव ने सत्तासी हजार साल बाद अपनी समाधि खोली।
कल पढि़ए...शिव का समाधी से उठना। दक्ष का यज्ञ करना।

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