शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2011

क्या होते है धर्मांधता और अंध-विश्वास?

धर्मान्धता का अर्थ यह न लिया जाए कि आदमी बाहर की आंखों से अंधा हो गया। धर्मान्धता का अर्थ है एक ऐसा अंधापन कि हमारे पास आंख तो है लेकिन हम उसको बंद करके बैठ गए हैं। आंखों से न दिखे और जिसे अंधा कहा जाए वह तो फिर भी धर्म के मामले में क्षमा योग्य है लेकिन आंख होकर भी न देखा जाए इसे धर्मान्धता कहा जाएगा।
फिर धर्म के मामले में तो भीतर की आंख अधिक काम आती है। इस भीतर की आंख से जब-जब भी देखा जाएगा धर्म के अर्थ ही बदल जाएंगे। हर धर्म स्थल का सम्मान किया जाए, यह भीतर की आंख से देखने पर होगा। जिस समय ईसाइयों और मुसलमानों के बीच एक लंबा कू्रसेड (धर्मयुद्ध) चला था तब यरूसलम मुसलमानों के कब्जे में आ गया था।
उस समय खलीफा उमर शासक था। उसने यह फैसला दिया था कि इस नगर का एक हिस्सा ईसाइयों के रहने, पूजा करने और व्यवसाय के लिए सुरक्षित रहेगा। इस बात के लिए ईसाई समुदाय के लोग दो सोने के सिक्के हुकुमत को अदा करते थे और हुकुमत उनके ईसाई धर्म का सम्मान करती थी।
इतिहास में एक बात दर्ज है कि ईसाइयों ने खलीफा उमर से यह गुजारिश की थी कि वे गिरजाघर में आकर नमाज अदा करें लेकिन खलीफा इसलिए राजी नहीं हुए यदि मैंने गिरजाघर में नमाज अदा कर दी तो आगे आने वाले समय में हमारे लोग इस गिरजाघर को मस्जिद में न बदल डालें। खलीफा उमर का यह फैसला आज भी संवेदनशील और समझदार लोग याद रखते हैं। एक-दूसरे के धर्म स्थल का सम्मान अपने ही धर्म का सम्मान करना है, वरना धर्मान्धता उस परम शक्ति को भी नहीं देखने देती जिसके नाम पर धर्म चलाए जाते हैं।
(www.bhaskar.com)

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