शुक्रवार, 25 मार्च 2011

दुर्योधन ने क्यों दी जान देने की धमकी?

दुर्योधन ने धृतराष्ट्र से बोला पिताजी मामाजी ठीक कह रहे हैं मैं जूए के अलावा किसी भी तरीके से पांडवों को नहीं हरा सकता हूं। तब धृतराष्ट्र ने कहा मेरे मंत्री विदूर बहुत बुद्धिमान है। मैं उनके कहे अनुसार ही काम करता हूं। उनसे सलाह लेकर ही मैं निश्चय करूंगा कि इस विषय पर मुझे क्या काम करना चाहिए। जो बात दोनों पक्ष के लिए हितकर होगी, वही वे कहेंगे।दुर्योधन ने कहा पिताजी यदि विदुरजी आ गए तब तो वे आपको जरूर रोक देंगे और मैं निश्चित ही अपनी जान दे दूंगा। तब आप विदुर के साथ आराम से राज्य में रहिएगा।
मुझसे आपको क्या लेना है? दुर्योधन की बात सुनकर धृतराष्ट्र ने उसकी बात मान ली। परंतु फिर जूए को अनेक अनर्थो की खान जानकर विदुर से सलाह करने निश्चय किया और उनके पास समाचार भेज दिया। यह समाचार सुनते ही विदुर जी ने समझ लिया कि अब कलयुगि अथवा कलयुग का प्रारंभ होने वाला है। विनाश की जड़े जमना शुरू हो गई हैं। वे बहुत ही जल्दी धृतराष्ट्र के पास पहुंचे। उन्होंने धृतराष्ट्र से कहा मैं जूए को बहुत ही अशुभ मानता हूं। आप कुछ ऐसा उपाय कीजिए जिससे मेरे भाई भतीजों में विरोध ना हो।
धृतराष्ट्र ने कहा मैं भी तो यही चाहता हूं। लेकिन यदि देवता अनुकूल होंगे तो पुत्र और भतीजों में कलह नहीं होगा।इतना कहने के बाद धृतराष्ट्र ने अपने पुत्र दुर्योधन को अकेले में बुलवाया और उसे समझाने का प्रयास किया लेकिन दुर्योधन बोला पिताजी मेरी धनसम्पति तो बहुत ही सामान्य है। इससे मुझे संतोष नहीं है। मुझे बहुत दुख हो रहा है। मैंने राजसूय यज्ञ के समय युधिष्ठिर की आज्ञा से मणि, रत्न व राशि इकट्ठी की थी। उसके धन का कोई छोर नहीं है। जब रत्नों की भेंट लेते हुए मेरे हाथ थक गए थे। मैं जब उनकी सभा में घुम रहा था तो मयदानव के बनाए स्फटिक बिन्दु सरोवर ने मुझे बावला सा बना दिया था।

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