शुक्रवार, 25 मार्च 2011

कैसे जन्म हुआ मनुष्य जाति का?


नारदजी की कथा समाप्त होने के बाद याज्ञवल्क्य जी भारद्वाज मुनि से बोले कि शंकर जी की बात सुनकर पार्वती जी मुस्कुराई। फिर शिवजी पार्वती जी को भगवान के अवतार की दूसरी कहानी सुनाने लगे। मनु और शतरूपा जिनसे मनुष्यो की उत्पति हुई दोनों आचरण में बहुत अच्छे थे। राजा उत्तानपाद उनके पुत्र थे। जिनके पुत्र ध्रुव थे। उनके छोटे लड़के का नाम प्रियवृत था। देवहूति उनकी पुत्री थी।
जो कदम मुनि की पत्नी बनी। उन्होंने आदिदेव कपिल मुनि को जन्म दिया। राजा मनु ने बहुत समय तक राज्य किया। उसके बाद उम्र ढलने के साथ उन्होंने सन्यास लेने का मन बना लिया। वे सारा राज्य जबरदस्ती अपने पुत्रों को देकर वे वन चले गए।चलते-चलत वे गोमती के किनारे जा पहुंचे। जहां बहुत से सुन्दर तीर्थ थे। मुनियों ने आदरपूर्वक सभी तीर्थ उनको करा दिए।
उनका शरीर दुर्बल हो गया था। वे मुनियों जैसे ही वस्त्र धारण करते थे। दोनों राजा और रानी साग फल और कन्द का आहार करते थे। इस प्रकार जल का आहार करते छ: हजार वर्ष बीत गए। ऐसे उन्होंने कई वर्षो तक तपस्या की। दस हजार वर्षो तक केवल वायु के आधार पर जीवित रहे और उन्होंने इन्हें अनेक प्रकार से ललचाया और कहा कुछ वर मांगो। लेकिन वे बिना डिगे तप करते रहे।

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