रविवार, 13 मार्च 2011

....तब शिशुपाल ने श्रीकृष्ण को फटकारना शुरू किया

महाभारत में अब तक आपने पढ़ा...भीम द्वारा जरासंध का वध और बंदी राजाओं को मुक्त करवाना अब आगे...जरासंध को हराने के बाद पांचों पांडवों ने दिग्विजय अभियान चलाया और सभी दिशाओं में जीत का परचम लहराया। उसके बाद जब धर्मराज ने देखा कि मेरे अन्न, वस्त्र,रत्न, आदि के भण्डार सभी पूर्ण है। तब उन्होंने यज्ञ करने का संकल्प किया।
अब युधिष्ठिर ने सभी बढ़ो की आज्ञा से और छोटों की सहमति से राजसूय यज्ञ करने का निर्णय लिया। ब्राह्मणों ने सही समय पर युधिष्ठिर को यज्ञ की दिक्षा दी। युधिष्ठिर ने अपनी भव्य सेना, मंत्रियों और सगे संबंधियों के साथ यज्ञशाला में प्रवेश किया। उनके रहने के लिए सुन्दर स्थान बनाए गए। युधिष्ठिर ने भीष्म, धृतराष्ट्र आदि को बुलाने के लिए नकुल को भेजा। सभी लोगों ने निमंत्रण स्वीकार किया। यज्ञ में आने वाले राजा और राजकुमारों को गिनना कठिन था। धर्मराज युधिष्ठिर ने भीष्म पितामह और द्रोणाचार्य से प्रार्थना की-आप लोग इस यज्ञ में मेरी सहायता करो।
आप इस खजाने को अपना ही समझिए और इस तरह सब कार्य देखिए, जिससे मेरी मनोकामना पूरी हो। यज्ञ के आखिरी दिन सभी राजा सभा में बैठे थे। तब धर्मराज ने पूछा पितामह बताइए कि इन सभी सज्जनों में से हम सबसे पहले किसकी पूजा करें। तब भीष्म ने कहा इस पृथ्वी पर श्री कृष्ण से बढ़कर कौन है? इसलिए सबसे पहले उनकी ही पूजा करनी चाहिए। भीष्म की आज्ञा से सहदेव ने श्रीकृष्ण की पूजा की। चेदिराज शिशुपाल भगवान श्री कृष्ण की अग्रपूजा देखकर चिढ़ गया। उसने भरी सभा में भीष्म पितामह और युधिष्ठिर को धिक्कारते हुए कृष्ण को फटकारना शुरू किया।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें