शुक्रवार, 4 मार्च 2011

क्यों संकटमोचक हैं हनुमान?

श्री हनुमान बल, पराक्रम, ऊर्जा, बुद्धि, सेवा, भक्ति की आदर्श प्रतिमा माने जाते हैं। यही कारण है कि शास्त्रों में श्री हनुमान को सकलगुणनिधान भी कहा गया है। श्री हनुमान को चिरंजीव सरल शब्दों में कहें तो अमर माना जाता है।

हनुमान उपासना के महापाठ श्री हनुमान चालीसा में गोस्वामी तुलसीदास ने भी लिखा है कि चारो जुग परताप तुम्हारा है परसिद्ध जगत उजियारा।
इस चौपाई से साफ संकेत है कि श्री हनुमान ऐसे देवता है, जो हर युग में किसी न किसी रूप, शक्ति और गुणों के साथ जगत के लिए संकटमोचक बनकर मौजूद रहे। श्री हनुमान से जुड़ी यही विलक्षण और अद्भुत बात उनके प्रति आस्था और श्रद्धा गहरी करती है। इसलिए यहां जानते हैं श्री हनुमान किस युग में किस तरह जगत के लिए शोकनाशक बनें-
सतयुग - श्री हनुमान रुद्र अवतार माने जाते हैं। शिव का दु:खों को दूर करने वाला रुप ही रुद्र है। इस तरह कहा जा सकता है कि सतयुग में हनुमान का शिव रुप ही जगत के लिए कल्याणकारी और संकटनाशक रहा।
त्रेतायुग - इस युग में श्री हनुमान को भक्ति, सेवा और समर्पण का आदर्श माना जाता है। शास्त्रों के मुताबिक विष्णु अवतार श्री राम और रुद्र अवतार श्री हनुमान यानि पालन और संहार शक्तियों के मिलन से जगत की बुरी और दुष्ट शक्तियों का अंत हुआ।
द्वापर युग - इस युग में श्री हनुमान नर और नारायण रूप भगवान श्रीकृष्ण और अर्जुन के साथ धर्मयुद्ध में रथ की ध्वजा में उपस्थित रहे। यह प्रतीकात्मक रूप में संकेत है कि श्री हनुमान इस युग में भी धर्म की रक्षा के लिए मौजूद रहे।
कलयुग - हिन्दू धर्म शास्त्र श्रीमद्भागवत के मुताबिक कलयुग में श्री हनुमान का निवास गन्धमानदन पर्वत पर है। यही नहीं माना जाता है कि कलियुग में श्री हनुमान जहां-जहां अपने इष्ट श्रीराम का ध्यान और स्मरण होता है, वहां अदृश्य रूप में उपस्थित रहते हैं। शास्त्रों में उनके गुणों की स्तुति में लिखा भी गया है कि -
यत्र-यत्र रघुनाथकीर्तनं तत्र-तत्र कृत मस्तकांजलिं।
इस तरह श्री हनुमान हर युग में अलग-अलग रुप और शक्तियों के साथ संकटमोचक देवता के रूप में जगत को विपत्तियों से उबारते हैं।

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