बुधवार, 16 मार्च 2011

कामदेव ने कैसे की नारदजी की तपस्या भंग?

रावण व कुंभकरण के जन्म की कहानी अब आगे...हिमाचल पर्वत में एक गुफा थी। उसके पास गंगा बहती थी। वह गुफा नारदजी को बहुत अच्छी लगी। दक्ष प्रजापति के शाप के कारण वे वैसे तो एक जगह अधिक समय तक नहीं रह सकते थे। लेकिन भगवान को याद करने के कारण उनका ध्यान लग गया।
मन की गति स्वाभाविक होने के कारण उनकी समाधी लग गई।नारद मुनि की स्थिति देखकर देवराज इन्द्र डर गया। उसने कामदेव को बुलाकर आदर सत्कार किया। कहा मेरे लिए तुम नारद की समाधी को भंग कर दो क्योंकि उस समय इन्द्र के मन में यह डर था कि वह नारद मुझ से मेरा इन्द्रलोक छिनना चाहते हैं। अब कामदेव उस आश्रम की तरफ निकल पड़े।जब कामदेव उस आश्रम में गए, तब उसने अपनी माया से वहां वसन्त का मौसम ला दिया। काम को भड़काने वाली हवाएं चलाई।
रम्भा आदि अप्सराएं जो सभी कामकला में निपुण थी। वे गाने लगी। लेकिन कामदेव की कोई भी कला नारदजी पर असर नहीं कर सकी। तब कामदेव को अपने सर्वनाश की चिंता सताने लगी। इसलिए कामदेव नारदजी से क्षमा मांगने लगे।
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