रविवार, 6 मार्च 2011

क्यों ॐ कहलाता है प्रणव मंत्र?

सनातन धर्म और ईश्वर में आस्था रखने वाला हर व्यक्ति देव उपासना के दौरान शास्त्रों, ग्रंथों में या भजन और कीर्तन के दौरान ॐ महामंत्र को अनेक बार पढ़ता, सुनता या बोलता है। धर्मशास्त्रों में यही ॐ प्रणव नाम से भी पुकारा गया है। असल में इस नाम से जुड़े गहरे अर्थ हैं, जो अलग-अलग पुराणों और शास्त्रों में तरह से बताए गए हैं। यहां हम जानते शिव पुराण में बताए ॐ के प्रणव नाम से जुड़े भाव और महत्व को -

शिव पुराण में प्रणव के अलग-अलग शाब्दिक अर्थ और भाव बताए गए हैं। जिनके मुताबिक -
- प्र यानी प्रपंच, न यानी नहीं और व: यानी तुम लोगों के लिए। सार यही है कि प्रणव मंत्र सांसारिक जीवन में प्रपंच यानी कलह और दु:ख दूर कर जीवन के अहम लक्ष्य यानी मोक्ष तक पहुंचा देता है। यही कारण है ॐ को प्रणव नाम से जाना जाता है।
- दूसरे अर्थों में प्रनव को प्र यानी यानी प्रकृति से बने संसार रूपी सागर को पार कराने वाली नव यानी नाव बताया गया है।
- इसी तरह ऋषि-मुनियों की दृष्टि से प्र - प्रकर्षेण, न - नयेत् और व: युष्मान् मोक्षम् इति वा प्रणव: बताया गया है। जिसका सरल शब्दों में मतलब है हर भक्त को शक्ति देकर जनम-मरण के बंधन से मुक्त करने वाला होने से यह प्रणव है।
- धार्मिक दृष्टि से परब्रह्म या महेश्वर स्वरूप भी नव या नया और पवित्र माना जाता है। प्रणव मंत्र से उपासक नया ज्ञान और शिव स्वरूप पा लेता है। इसलिए भी यह प्रणव कहा गया है।

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