माता-पिता का एक मनोविज्ञान होता है सभी माता-पिता एक समय बाद बच्चों से प्रेम मांगने लगते हैं। प्रेम कभी मांगकर नहीं मिलता है और जो प्रेम मांगकर मिले उसका कोई मूल्य नहीं होता।
एक बात और समझ लें कि यदि माता-पिता बच्चों से प्रेम करें तो वह बड़ा स्वाभाविक है, सहज है, बड़ा प्राकृतिक है, क्योंकि ऐसा होना चाहिए। नदी जैसे नीचे की ओर बहती है, ऐसा माता-पिता का प्रेम है। लेकिन बच्चे का प्रेम माता-पिता के प्रति बड़ी अस्वाभाविक घटना है। ये बिल्कुल ऐसा है जैसे पानी को ऊपर चढ़ाना। कई मां-बाप यह सोचते हैं कि हमने बच्चे को जीवनभर प्रेम दिया और जब अवसर आया तो वह हमें प्रेम नहीं दे रहा, वह लौटा नहीं रहा।
इसमें एक सवाल तो यह है कि क्या उन्होंने अपने मां-बाप को प्रेम दिया था? यदि आप अपने माता-पिता को प्रेम, स्नेह और सम्मान नहीं दे पाए तो आपके बच्चे आपको कैसे दे सकेंगे? इसलिए हमारे यहां सभी प्राचीन संस्कृतियां माता-पिता के लिए प्रेम की के स्थान पर आदर की स्थापना भी करती हैं। इसे सिखाना होता है, इसके संस्कार डालने होते हैं, इसके लिए एक पूरी संस्कृति का वातावरण बनाना होता है।
जब बच्चा पैदा होता है तो वह इतना निर्दोष होता है, इतना प्यारा होता है कि कोई भी उसको स्नेह करेगा, तो माता-पिता की तो बात ही अलग है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, हमारा प्रेम सूखने लगता है। हम कठोर हो जाते हैं। बच्चा बड़ा होता है, अपने पैरों पर खड़ा होता है तब हमारे और बच्चे के बीच एक खाई बन जाती है। अब बच्चे का भी अहंकार बन चुका है वह भी संघर्ष करेगा, वह भी प्रतिकार करेगा, उसको भी जिद है, उसका भी हठ है। इसलिए प्रेम का सौदा न करें इसे सहज बहने दें।
एक बात और समझ लें कि यदि माता-पिता बच्चों से प्रेम करें तो वह बड़ा स्वाभाविक है, सहज है, बड़ा प्राकृतिक है, क्योंकि ऐसा होना चाहिए। नदी जैसे नीचे की ओर बहती है, ऐसा माता-पिता का प्रेम है। लेकिन बच्चे का प्रेम माता-पिता के प्रति बड़ी अस्वाभाविक घटना है। ये बिल्कुल ऐसा है जैसे पानी को ऊपर चढ़ाना। कई मां-बाप यह सोचते हैं कि हमने बच्चे को जीवनभर प्रेम दिया और जब अवसर आया तो वह हमें प्रेम नहीं दे रहा, वह लौटा नहीं रहा।
इसमें एक सवाल तो यह है कि क्या उन्होंने अपने मां-बाप को प्रेम दिया था? यदि आप अपने माता-पिता को प्रेम, स्नेह और सम्मान नहीं दे पाए तो आपके बच्चे आपको कैसे दे सकेंगे? इसलिए हमारे यहां सभी प्राचीन संस्कृतियां माता-पिता के लिए प्रेम की के स्थान पर आदर की स्थापना भी करती हैं। इसे सिखाना होता है, इसके संस्कार डालने होते हैं, इसके लिए एक पूरी संस्कृति का वातावरण बनाना होता है।
जब बच्चा पैदा होता है तो वह इतना निर्दोष होता है, इतना प्यारा होता है कि कोई भी उसको स्नेह करेगा, तो माता-पिता की तो बात ही अलग है। जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होने लगता है, हमारा प्रेम सूखने लगता है। हम कठोर हो जाते हैं। बच्चा बड़ा होता है, अपने पैरों पर खड़ा होता है तब हमारे और बच्चे के बीच एक खाई बन जाती है। अब बच्चे का भी अहंकार बन चुका है वह भी संघर्ष करेगा, वह भी प्रतिकार करेगा, उसको भी जिद है, उसका भी हठ है। इसलिए प्रेम का सौदा न करें इसे सहज बहने दें।
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