शनिवार, 16 अप्रैल 2011

जब हस्तिनापुर की जनता पहुंची युधिष्ठिर के पास?

प्रजा की बात सुनकर युधिष्ठिर ने कहा-प्रजाजनों वास्तव में हम लोगों में कोई गुण नहीं है, फिर भी आप लोग प्यार और दया के वश में होकर हममें गुण देख रहे है। यह बड़े सौभाग्य की बात है। मैं अपने भाइयों के साथ आप लोगों से प्रार्थना करता हूं। आप अपने प्रेम और कृपा से हमारी बात स्वीकार करें। इस समय हस्तिनापुर में पितामह भीष्म, राजा, धृतराष्ट्र, विदुर आदि सभी हमारे सगे सम्बंधी निवास करते हैं। जैसे आप लोग हमारे लिए दुखी हो रहे हैं।
उतनी ही वेदना उनके मन में भी है। आप लोग हमारी प्रसन्नता के लिए वापस लौट जाइए। आप लोग बहुत दूर तक आ गए हैं अब साथ ना चले। मेरे प्रिय लोग में आपके पास धरोहर के रूप में छोड़कर जा रहा हूं। मैं आप लोगों से दिल से कह रहा हूं आपके ऐसा करने से मुझे बहुत प्रसन्नता होगी। मैं उसे अपना सत्कार समझूंगा। जब सभी लोग उनके आग्रह पर हस्तिनापुर लौट गए तो पाण्डव रथ में बैठकर वहां से चल पड़े। उसके बाद वे गंगा तट पर प्रणाम कर बरगद के पेड़ के पास आए।
उस समय संध्या हो चली थी। वहां उन्होंने रात बिताई। उस समय बहुत से ब्राह्मण पाण्डवों के पास आए, उनमें बहुत से अग्रिहोत्रि ब्राह्मण भी थे। उनकी मण्डली में बैठकर सभी पांडवों ने उनसे अनेक तरह की बातचीत की। रात बीत गई। जब उन्होंने वन में जाने की तैयारी की। तब ब्राह्मणों ने पाण्डवों से कहा महात्माओं वन में बड़े-बड़े विघ्र और बाधाएं हैं। इसलिए आप लोगों को वहां बड़ा कष्ट होगा। इसलिए आप लोग उचित स्थान पर जाएं। हमें आप अपने पास रखने की कृपा कीजिए। हमारे पालन पोषण के लिए आपको चिंता की आवश्कता नहीं होगी। हम अपने-अपने भोजन की व्यवस्था कर लेंगे। वहां बड़े प्रेम से अपने इष्ट का ध्यान करेंगें। उससे आपका कल्याण होगा।
www.bhaskar.com

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें