बुधवार, 20 अप्रैल 2011

भागवत २३३ : तब कृष्ण को पत्नी के रूप में मिली सत्यभामा

भगवान उसको लेकर वापस आते हैं और जब वो मणि सत्राजीत को दी गई तो सत्राजीत को बड़ा दुख हुआ, ग्लानि भी हुई, लज्जा भी आई कि मैंने कृष्णजी पर आरोप लगाया हत्या व चोरी का। उसने क्षमा मांगी और उसने कृष्णजी से कहा मैं अपनी ग्लानि को मिटाना चाहता हूं तो मेरी पुत्री है सत्यभामा आपको मैं सौंपता हूं। आप उसे स्वीकार करिए और उसने कहा यह मणि भी आप रखिए दहेज में। कृष्ण ने कहा-यह मणि तो आफत का काम है और दो-दो मणि मिल गई एक मणि के चक्कर में। मैं इन्हीं को संभालता हूं। आप यह मणि रखो अपने पास।
सत्यभामा, जामवती, रुक्मिणी कृष्णजी के जीवन में आ गईं। मणि उन्होंने सत्राजीत को वापस कर दी। ऐसा कहते हैं कि उस मणि ने इतनी आफत पैदा कर दी कि जब भगवान् को सूचना मिली कि लाक्ष्यागृह में पाण्डव जल गए हैं तो भगवान् कुछ दिन के लिए हस्तिनापुर चले गए। भगवान श्रीकृष्ण के हस्तिनापुर चले जाने से द्वारिका में अक्रूर और कृतवर्मा को अवसर मिल गया।
उन लोगों ने शतधन्वा से आकर कहा-तुम सत्राजीत से मणि क्यों नहीं छीन लेते? सत्राजीत ने अपनी श्रेष्ठ कन्या सत्यभामा का विवाह हमसे करने का वचन दिया था और अब उसने हम लोगों का तिरस्कार करके उसे श्रीकृश्ण के साथ ब्याह दिया है। अब सत्राजीत भी अपने भाई प्रसेन की तरह क्यों न यमपुरी में जाए? शतधन्वा पापी था और अब तो उसकी मृत्यु भी उसके सिर नाच रही थी। अक्रूर और कृतवर्मा के इस प्रकार बहकाने पर शतधन्वा उनकी बातों में आ गया और उस महादुष्ट ने लोभवश सोये हुए सत्राजीत को मार डाला और मणि लेकर वहां से चंपत हो गया। सत्यभामा को यह देखकर कि मेरे पिता मार डाले गए हैं बड़ा शोक हुआ। वह हस्तिनापुर को गईं।

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