सोमवार, 4 अप्रैल 2011

...और दु:शासन द्रोपदी के वस्त्र खींचने लगा


द्रोपदी ने सभा में आकर कहा इन सभी ने धर्मराज को धोखे से बुलाकर उनका सर्वस्व जीत लिया। उन्होंने पहले अपने भाइयों को हराकर मुझे दावं पर लगाया। अब उन्हें मुझे दावं पर लगाकर हारने का हक था या नहीं ये यहां बैठे कुरुवंशी बताएंगे। तब धृतराष्ट्र के पुत्र विकर्ण ने कहा जूआ, शराब, स्त्री ये सब आसक्ति है। इनमें संलग्र होने पर राजा युधिष्ठिर ने आकर जूए की आसक्ति के कारण द्रोपदी को दावं लगाना पड़ा।
द्रोपदी केवल युधिष्ठिर की ही पत्नी नहीं पांचो पांडवों का उस पर बराबर अधिकार है। इसलिए मेरे विचार में यह बात ध्यान देने योग्य है कि युधिष्ठिर ने अपने को हारने के बाद द्रोपदी को दावं पर लगा दिया। इन सब बातों से मैं निश्चय पर पहुंचता हूं कि द्रोपदी जूए में नहीं हारी गयी। द्रोपदी के बार-बार पूछने पर भी किसी ने कोई उत्तर नहीं दिया। थोड़ी देर बाद कर्ण बोला विकर्ण तू दुर्योधन का छोटा भाई है। तुझे धर्म का ज्ञान नहीं है।
युधिष्ठिर ने अपना सर्वस्व दावं पर लगा दिया और द्रोपदी भी उसके सर्वस्व में है। अब यह सब देखकर दु:शासन बोला विकर्ण तू बालक होकर बूढों सी बात मत कर। इसकी बात पर कोई ध्यान मत दो। पांडवों और द्रोपदी के सारे वस्त्र उतार लो।जिस समय दु:शासन द्रोपदी के वस्त्र खींचने लगा तब द्रोपदी मन ही मन प्रार्थना करने लगी। श्रीकृष्ण का ध्यान करके वह मुंह ढककर रोने लगी। तब उसकी पुकार सुनकर कृष्ण वहां पहुंचे और दु:शासन जब द्रोपदी के चीर खींचने लगा तो वस्त्रों का ढेर लग गए उन्होंने द्रोपदी की रक्षा की।
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