बुधवार, 6 अप्रैल 2011

जो होना होता है वही होता है

राजा उसे साधु समझकर उससे आदर के साथ मिलता है। वह उसे कहता है कि मैं राजा प्रतापभानु का मंत्री हूं। मैं जंगल में शिकार करने आया था लेकिन अपना रास्ता भटक गया हूं। वह साधु का वेष धारण किए हुए राजा का दुश्मन उसे पहचान जाता है। वह शत्रु राजा प्रतापभानु से कहता है कि अंधेरा हो गया है आप आज रात यही रुक जाए। बहुत अच्छा ऐसा कहकर और घोड़े को पेड़ से बांधकर राजा बैठ गया। राजा ने उसको नहीं पहचाना, पर वह राजा को पहचान गया था।
राजा के मन में तो कोई छल नहीं था लेकिन तपस्वी के मन में कपट था। राजा ने उससे पूछा आप कौन है वो तपस्वी बोला हमारा नाम भिखारी है क्योंकि हम निर्धन और अनिकेत है। राजा ने कहा जो आपके जैसे अभिमान रहित लोग होते हैं वे अपने स्वरूप को हमेशा छुपाए रखते हैं। इसी कारण तो आप लोगों को संत और वेद कहकर पुकारते है। आप जैसे गरीबों और बेघर लोगों को देखकर तो शिव को भी संदेह हो जाता है। आप जो हों सो हों मैं आपको प्रणाम करता हूं।
तपस्वी बोलता है राजा अभी तक ना तो मुझसे कोई मिला है और ना मैं किसी से मिला हूं क्योंकि इस संसार में जो प्रतिष्ठारूपी अग्रि है मेरे अनुसार वह तप रूपी वन को भस्म कर देती है। इसी कारण मैं जगत से छिपकर रहता हूं। तपस्वी कहता है मेरा नाम एकतनु है। तपस्वी से इस तरह की बातें सुनकर राजा उस पर विश्वास कर लेता है। उससे प्रभावित होकर पूछता है आपके नाम का अर्थ क्या है। तब वह कहता है जब सृष्टी की उत्पति हुई तभी मेरी भी हुई।

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें