शुक्रवार, 1 अप्रैल 2011

पूजा में कुमकुम का ही तिलक लगाने का रिवाज क्यों?

हमारे हिन्दू धर्म में पूजा-पाठ से जुड़ी अनेक परंपराएं हैं जैसे पूजा के समय कलाई पर पूजा का धागा बांधना, फल चढ़ाना, तिलक लगाना आदि। बिना तिलक धारण किए कोई भी पूजा-प्रार्थना शुरू नहीं होती है।

मान्यताओं के अनुसार, सूने मस्तक को शुभ नहीं माना जाता।पूजन के समय माथे पर अधिकतर कुमकुम का तिलक लगाया जाता है। तिलक ललाट पर या छोटी सी बिंदी के रूप में दोनों भौहों के मध्य लगाया जाता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से तिलक लगाने से दिमाग में शांति, तरावट एवं शीतलता बनी रहती है। मस्तिष्क में सेराटोनिन व बीटाएंडोरफिन नामक रसायनों का संतुलन होता है। मेघाशक्ति बढ़ती है तथा मानसिक थकावट विकार नहीं होता।
लेकिन पूजा में अधिकतर कुमकुम का तिलक ही लगाया जाता है। इसके पीछे कारण यह है कि कुमकुम हल्दी का चूर्ण होता है। जिसमें नींबु का रस मिलाने से लाल रंग का हो जाता है। आयुर्वेद के अनुसार कुमकुम त्वचा के शोधन के लिए सबसे बढिय़ा औषघी है। इसका तिलक लगाने से मस्तिष्क तन्तुओं में क्षीणता नहीं आता है। इसीलिए पूजा में कुमकुम का तिलक लगाया जाता है।

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