रविवार, 3 अप्रैल 2011

जब दु:शासन उसे घसीटता हुआ सभा में ले गया?

जब प्रतिकामी द्रोपदी को बिना लिए सभा में पहुंचता है तो दुर्योधन क्रोधित होकर बोला कि जाओ प्रतिकामी तुम जाकर द्रोपदी को यही लेआओ। उसके इस प्रश्र का उत्तर उसे यहीं दे दिया जाएगा। प्रतिकामी द्रोपदी के क्रोध से डरता था। उसने दुर्योधन की बात टालकर सभा में बैठक सभी लोगों से फिर पूछा कि मैं द्रोपदी से क्या कहूं। दुर्योधन को यह बात बुरी लगी।
उसने प्रतिकामी को घुर कर देखा और अपने छोटे भाई दु:शासन से बोला भाई तुम जाओ और द्रोपदी को पकड़ लाओ। ये हारे हुए पाण्डव हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते हैं। बड़े भाई की आज्ञा सुनते ही दु:शासन गुस्से में सभा से चल पड़ा। वह पाण्डवों के महल में जाकर बोला कृष्णे चल तुझे हमने जीत लिया है। अब तुम शर्माना छोड़कर हमारे साथ चलो। जब द्रोपदी चलने के लिए तैयार नहीं हुई। तब दुशासन ने द्रोपदी के घुंघराले बाल पकड़कर ।उसे घसीटता हुआ सभा तक ले गया। दुशासन की बात सुनकर द्रोपदी दुखी हुई।उसने गुस्से में कहा अरे दुष्ट दु:शासन सभा में कई वरिष्टजन बैठे है।
तु मेरे साथ जो व्यवहार कर रहा है कि यदि इन्द्र के साथ सारे देवता तेरी सहायता करें तो भी पाण्डवों के हाथ से तुझे छूटकारा न होगा। धर्मराज अपने धर्म पर अटल रहे। वे सुक्ष्म धर्म का मर्म जानते हैं। मुझे तो उनमें गुण ही गुण नजर आते हैं। धित्कार हे तुम जैसे क्षत्रियों पर कौरवों जिन्होंने अपने कुल की मर्यादा का नाश कर दिया। द्रोपदी जब ये बातें कह रही थी तो ऐसा लग रहा था मानो उसके शरीर से क्रोधाग्रि धधक रही हो।

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